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साल 1980 से 400 मी. पतली हो गई धरती की जरूरी परत

इस परत को समताप मंडल यानी स्ट्रैटोस्फेयर (Stratosphere) कहते हैं. साइंटिस्ट्स ने खुलासा किया है कि पिछले 40 सालों में यह इसकी ऊंचाई 402 मीटर कम हो गई है. मतलब हर दस साल में 100 मीटर ऊंचाई कम हो रही है.

Updated on: 19 May 2021, 01:58 PM

highlights

  • साल 1980 से 400 मीटर पतली हो गई परत
  • हर 10 साल में 100 मीटर ऊंचाई कम हो रही

नई दिल्ली:

हमारे वैज्ञानिकों के शोध हर बार जलवायु परिवर्तन (Climate change) के किसी नए नुकसान की जानकारी सामने ला रहे हैं. नए अध्ययन में पता चला है कि मानवजनित बड़ी मात्रा में किया जाने वाला ग्रीनहाउस गैसों (Greenhouse Gases) का उत्सर्जन हमारे वायुमंडल की अहम परत समताप मंडल (Stratosphere) को सिकोड़ रहा है और उसे पतला करता जा रहा है. इस बदलाव का  हमारी जलवायु के साथ हमारे सैटेलाइट के कामकाज पर पड़ रहा है. हमारे सिर के ठीक ऊपर करीब 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर धरती के चारों तरफ एक लेयर है.

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इस परत को समताप मंडल यानी स्ट्रैटोस्फेयर (Stratosphere) कहते हैं. साइंटिस्ट्स ने खुलासा किया है कि पिछले 40 सालों में यह इसकी ऊंचाई 402 मीटर कम हो गई है. मतलब हर दस साल में 100 मीटर ऊंचाई कम हो रही है. धरती के ऊपर 12 किलोमीटर से लेकर करीब 49.88 किलोमीटर की ऊंचाई तक ये स्ट्रैटोस्फेयर होता है. आमतौर पर आसमान की इस हवाई परत में सुपरसोनिक विमान और मौसम की जानकारी देने वाले गुब्बारे घूमते हैं. 

एक नई रिसर्च के मुताबिक हमारी धरती के चारों तरफ मौजूद यह हवाई परत की मोटाई पिछले 40 सालों में 402 मीटर कम हो गई है. अध्ययन के अनुसार वायुमंडल के समतापमंडल की परत साल 1980 के मुकाबले 402 मीटर संकुचित हो गई है और साल 2080 तक एक किलोमीटर और कम हो जाएगी अगर उत्सर्जन में भारी कटौती ना की गई तो. इसका सीधा असर हमारे जीपीएस नेविगेशन सिस्टम और रेडियो संचार माध्यमों पर पड़ रहा है.

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साइंस जर्नल एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित इस स्टडी में बताया गया है कि इसकी सबसे बड़ी वजह इंसानों द्वारा पैदा की जा रही ग्रीनहाउस गैसे हैं. क्योंकि जितना ज्यादा प्रदूषण होगा उतनी ही ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें निकलेंगी. जीवाश्म आधारित ईंधनों के जलने और उपयोग करने से कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है. हाल ही में वैज्ञानिकों ने दर्शाया कि जलवायु परिवर्तन का संकट पृथ्वी के घूर्णन की धुरी को बदल रहा है क्योंकि बड़े पैमाने पिघलते ग्लेशियर पूरी पृथ्वी पर फैले पानी और बर्फ के भार के वितरण को बदल रहे हैं.