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पृथ्वी पर मंडराया ये कैसा खतरा, 50 साल पहले की तुलना में अब तेजी से रही है घूम... परमाणु घड़ी में हो सकता है ये बड़ा बदलाव

जब भी पृथ्वी के रोटेशन की स्पीड थोड़ी भी बदलती है तो ग्लोबल टाइमकीपर के नाम से प्रसिद्ध परमाणु घड़ी पर इसका असर पड़ता है. इस बार भी ऐसी कुछ बड़े बदलाव की आशंका है. जिसका प्रभाव पृथ्वी पर भी देखने को मिलेगा.

Updated on: 04 Mar 2022, 11:15 AM

नई दिल्ली :

पृथ्वी आज से 50 साल पहले की तुलना में अपनी धुरी पर अब तेजी से घूम रही है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि अगर पृथ्वी की यह स्पीड बरकरार रहती है तो उन्हें परमाणु घड़ी से एक सेकेंड कम करना पड़ सकता है. पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने की गति कुछ दशकों में हमेशा बदलती रहती है. लाखों साल पहले पृथ्वी प्रतिवर्ष 420 बार घूमती थी, लेकिन अब वह 365 बार ऐसा करती है. पृथ्वी के इसी रोटेशन से दिन और रात होते हैं. जब भी पृथ्वी के रोटेशन की स्पीड थोड़ी भी बदलती है तो ग्लोबल टाइमकीपर के नाम से प्रसिद्ध परमाणु घड़ी पर इसका असर पड़ता है.

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जब पृथ्वी के घूमने की गति बढ़ती है तो परमाणु घड़ी में लीप सेकेंड जोड़ने पड़ते हैं. अब, यूके के नेशनल फिजिकल लैबोरेट्री के वैज्ञानिक पीटर व्हिबरले ने चेतावनी दी है कि अगर रोटेशन की स्पीड और बढ़ जाती है, तो हमें एक सेकंड कम करने की जरूरत पड़ेगी.

86,400 सेकंड का होता है एक दिन
पृथ्वी पर प्रत्येक दिन में 86,400 सेकंड होते हैं, लेकिन रोटेशन एक समान नहीं होता है. इसका अर्थ है कि एक वर्ष के दौरान, प्रत्येक दिन में एक सेकंड का अंश कम या ज्यादा होता है. यह पृथ्वी की कोर, उसके महासागरों और वायुमंडल की गति के साथ-साथ चंद्रमा के खिंचाव के कारण होता है.

परमाणु घड़ी अत्यंत सटीक होती है और परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों की गति को मापती है जिन्हें पूर्ण शून्य (Absolute Zero) तक ठंडा कर दिया गया है. इसलिए, परमाणु घड़ी को पृथ्वी के घूर्णन में सेकंड की संख्या के अनुरूप रखने के लिए 1972 के बाद से हर 18 महीने में लीप सेकंड जोड़े गए हैं. हालांकि परमाणु घड़ी से कभी भी एक सेकेंड घटाया नहीं गया है. इस सिस्टम से ऐसा करने का कभी टेस्ट भी नहीं किया गया है.

परमाणु घड़ियों में क्यों जोड़ा जाता है लीप सेकेंड?
यह विचार पिछले साल आया था, जब रोटेशन की गति तेज होने लगी थी, लेकिन यह फिर से धीमा हो गया है. 2021 में औसत दिन 2020 से 0.39 मिलीसेकंड कम है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड एंड टेक्नोलॉजी के जूडा लेविन (Judah Levin of the National Institute of Standards and Technology) ने बताया, 'जैसे-जैसे समय बीतता है, परमाणु घड़ियों के समय और खगोल विज्ञान द्वारा मापे गए समय के बीच धीरे धीरे परिवर्तन होता है. उस परिवर्तन या अंतर को बहुत बड़ा होने से बचाने के लिए 1972 में परमाणु घड़ियों में समय-समय पर लीप सेकंड जोड़ने का निर्णय लिया गया था.'

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कौन मापता है पृथ्वी के घूमने की रफ्तार
पृथ्वी अपनी धुरी पर कितनी रफ्तार से घूम रही है, इसको मापने की जिम्मेदारी इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम सर्विस के पास है. इसके लिए यह सर्विस उपग्रहों को लेजर बीम भेजकर और उनके मूवमेंट को मापने के लिए इसका उपयोग करके करती है. जब यह परमाणु घड़ियों के अनुरूप नहीं होता है, तो वैज्ञानिक घड़ियों को एक सेकंड के लिए रोक देते हैं ताकि उन्हें वापस लाइन में लाया जा सके.