मंगल ग्रह पर बसेगी सस्ती कॉलोनी, एस्ट्रोनॉट्स के खून-पसीने से तैय़ार होंगी ईंटे

मंगल ग्रह पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स के खून, पसीने और आंसू को मंगल की मिट्टी से मिलाकर वहीं ईंट बनाई जा सकती है.

author-image
Satyam Dubey
New Update
Marsh

Marsh ( Photo Credit : File Photo)

किसी जमाने में मंगल ग्रह पर पहुंचने की सोच ही बड़ी बात होती थी. लेकिन अब मंगल ग्रह पर इंसान पहुंच चुका है. जिसके बाद अब इंसानी बस्ती बनाने की भी बात की जा रही है. लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि किसी भी निर्माण के जरूरी सामग्री को मंगल तक कैसे ले जाया जाए. आपको बता दें कि ये भारी काम होने के साथ ही काफी महंगा भी है. अब एक ऐसा आइडिया निकाला गया है जो सस्ती कॉलोनी बनाने में मदद करेगा. 
 
आपको बता दें कि वैज्ञानिकों द्वारा गणना की गई है कि अगर एक ईंट को धरती से मंगल ग्रह तक ले जाया जाए तो 2 मिलियन डॉलर्स यानी 15.00 करोड़ रुपयों से ज्यादा लागत आएगी. अब आप सोचिए वहां घर बनाना कितना मंहगा होगा. ईंट के अलावा जरा सोचिए सीमेंट, सरिये, लेबर की कीमत कितनी होगी. यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के वैज्ञानिकों ने आइडिया दिया है, जिसमें वो कह रहे हैं कि मंगल ग्रह पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स के खून, पसीने और आंसू को मंगल की मिट्टी से मिलाकर वहीं ईंट बनाई जा सकती है.

Advertisment

यह भी पढ़ें: NASA ने दी चेतावनी, धरती पर आने वाली है बड़ी तबाही ?

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि कंस्ट्रक्शन मटेरियल को धरती से मंगल तक ले जाने की जरूरत नहीं होगी. इसका निर्माण वहीं किया जा सकेगा. मंगल ग्रह पर ईंट बनाने की प्रक्रिया में एस्ट्रोनॉट्स के पेशाब (Urine) को भी शामिल किया जा सकता है, लेकिन इसक उपयोग अन्य कामों में भी किया जाएगा.
 
वैज्ञानिकों ने कहा कि मंगल ग्रह की मिट्टी और अंतरिक्ष यात्रियों के खून, पसीने और आंसू को मिलाकर 'कॉस्मिक कॉन्क्रीट' (Cosmic Concrete) बनाया जा सकता है. वैज्ञानिकों ने आगे बताया इंसानों के खून में ऐसा प्रोटीन होता है जो पसीने, आंसू और पेशाब के साथ मिलाकर उससे मंगल की मिट्टी को ढालकर एक सख्त ईंट बनाई जा सकती है. 

इसके साथ ही इंसानों के ब्लड प्लाज्मा में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला प्रोटीन सीरम एल्बूमिन को पसीने और आंसू से मिले पानी और मंगल ग्रह की मिट्टी से मिलाकर ईंट बनाई जाएगी. जिसको एस्ट्रोक्रीट नाम दिया गया है. इसकी कंप्रेसिव स्ट्रेंथ 25 मेगापास्कल्स है. यह पारंपरिक कॉन्क्रीट की ताकत से थोड़ा बेहतर है. पारंपरिक कॉन्क्रीट की कंप्रेसिव स्ट्रेंथ 20 से 32 मेगापास्कल्स होती है.

यह भी पढ़ें: भारत में अब WhatsApp के जरिए बुक करें Uber की सवारी

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ईंट को बनाते समय इसमें पेशाब का पानी और यूरिया मिला दिया जाए तो इसकी कंप्रेसिव स्ट्रेंथ 40 मेगापास्कल हो जाती है, जो पारंपरिक कॉन्क्रीट की ताकत से दोगुनी है. मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों एस्ट्रोनॉट्स के खून, पसीने, आंसू और पेशाब को चांद और मंगल ग्रह की मिट्टी को मिलाकर दो कॉन्क्रीट की छोटी ईंटे प्रयोग के तौर पर बनाई हैं. जो बेहद मजबूत कॉन्क्रीट है.

डॉ. एलेड रोबर्स की मानें तो धरती का जलवायु बदल रहा है. ग्लोबल वॉर्मिंग हो रही है. देशों में मारा-मारी मची है, ऐसे में इंसान ज्यादा दिनों तक धरती पर रह नहीं पाएगा. अंतरिक्ष में रहने और साइंटिफिक खोज के लिए उसे दूसरे ग्रहों पर जाकर ठिकाना बनाना होगा. ये ठिकाने सस्ते हो तो बेहतर है. इस काम में हमारे बनाए एस्ट्रोक्रीट मदद कर सकते हैं.

Astronauts Blood Cheap Mars Colony Cheap Colony on Mars Astronauts Astronauts Tears Astronauts Sweat
      
Advertisment