खगोलशास्त्रियों ने दिखाई देने और फिर गायब हो जाने वाले तारों के एक समूह का पता लगाया
स्वीडन, स्पेन, अमेरिका, यूक्रेन तथा भारत के एरियस के वैज्ञानिक डॉ. आलोक सी.गुप्ता ने फोटोग्राफी के आरंभिक रूप की जांच की जिसमें 12 अप्रैल, 1950 से रात के आसमान के चित्र लेने के लिए ग्लास प्लेट का उपयोग किया गया था.
highlights
- 12 अप्रैल, 1950 से रात के आसमान के चित्र लेने के लिए ग्लास प्लेट का उपयोग किया गया था
- खगोलशास्त्र के इतिहास में पहली बार एक समूह के दिखने और फिर गायब हो जाने का पता लगाया गया
नई दिल्ली :
खगोलशास्त्रियों (Astronomers) के एक अंतर्राष्ट्रीय समूह ने वस्तुओं जैसे दिखने वाले 9 सितारों की एक विचित्र घटना का पता लगाया है जो एक फोटोग्राफिक प्लेट में आधे घंटे के भीतर एक छोटे क्षेत्र में दिखे और फिर गायब हो गए. दुनियाभर के खगोलशास्त्रियों के एक समूह ने रात में आसमान की पुरानी छवियों की नई आधुनिक छवियों के साथ तुलना करने के द्वारा गायब हो जाने तथा दिखने वाली खगोलीय वस्तुओं को ट्रैक करते हैं. इसे एक अप्राकृतिक घटना के रूप में दर्ज करते हैं तथा ब्रह्मांड में बदलावों को रिकॉर्ड करने के लिए ऐसी घटनाओं की गहरी जांच करते हैं. स्वीडन, स्पेन, अमेरिका, यूक्रेन तथा भारत के एरियस के वैज्ञानिक डॉ. आलोक सी.गुप्ता ने फोटोग्राफी के आरंभिक रूप की जांच की जिसमें 12 अप्रैल, 1950 से रात के आसमान के चित्र लेने के लिए ग्लास प्लेट का उपयोग किया गया था तथा जिसे अमेरिका के कैलिफोर्निया के पालोमर वैधशाला में एक्सपोज़ किया गया था और इन क्षणिक तारों का पता लगाया गया, जो आधे घंटे के बाद तस्वीरों में नहीं पाए गए तथा तबसे उनका कोई पता नहीं चला. खगोलशास्त्र के इतिहास में पहली बार एक ही समय में ऐसी वस्तुओं के एक समूह के दिखने और फिर गायब हो जाने का पता लगाया गया है.
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स्पेन के केनेट्री द्वीप में 10.4एम ग्रैन टेलीस्कोपीयो कैनिरियास का उपयोग किया
खगोलशास्त्रियों ने ग्रेविटेशनल लेंसिंग, फॉस्ट रेडियो बर्स्ट, या ऐसा कोई परिवर्तनीय तारा जो आसमान में तेज बदलावों के इस क्लस्टर के लिए जिम्मेदार हो, जैसे एक सुस्थापित एस्ट्रोफिजिकल घटना का कोई स्पष्टीकरण नहीं पाया है. भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायतशासी संस्थान आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेस (ऐरिज) के वैज्ञानिक डॉ. आलोक सी. गुप्ता ने इस अध्ययन में भाग लिया, जिसे हाल ही में नेचर की ‘साइंसटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित किया गया था.
स्वीडन के स्टॉकहोम के नॉर्डिक इंस्टीच्यूट ऑफ थैयरोटिकल फिजिक्स के डॉ. बियट्रीज विलारोएल तथा स्पेन के इंस्टीट्यूटो डी एस्ट्रोफिजिका डी कैनिरियास ने डीप सेंकेंड इपोक ऑब्जर्वेशन करने के लिए स्पेन के केनेट्री द्वीप में 10.4एम ग्रैन टेलीस्कोपीयो कैनिरियास (दुनिया का सबसे बड़ा ऑप्टिकल टेलीस्कोप) का उपयोग किया. टीम को उम्मीद थी कि वे प्लेट पर दिखने और गायब हो जाने वाले प्रत्येक ऑब्जेक्ट की पॉजिशन पर एक काउंटरपार्ट यानी समकक्ष पाएंगे। पाए गए समकक्ष जरूरी नहीं कि उन अजीब वस्तुओं से भौतिक रूप से जुड़े ही हों.
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वैज्ञानिक अभी भी उन विचित्र क्षणिक तारों को देखे जाने के पीछे के कारणों की तलाश कर रहे है और वे अभी भी निश्चित नहीं हैं कि उनके दिखने और गायब हो जाने की क्या वजह थी. डॉ. आलोक सी. गुप्ता ने कहा, ‘जो एक मात्र चीज हम निश्चितता के साथ कह सकते है कि वह यह है कि इन छवियों में तारों जैसी वस्तुएं शामिल है जिन्हें वहां नहीं होना चाहिए. हम नहीं जानते कि वे वहां क्यों हैं. खगोलशास्त्री उस संभावना की जांच कर रहे है कि क्या फोटोग्राफिक प्लेट रेडियोएक्टिव पार्टिकल्स से दूषित थे, जिसकी वजह से प्लेट पर तारों का भ्रम हुआ लेकिन अगर यह अवलोकन सही साबित हुआ तो एक अन्य विकल्प यह होगा कि ये पहला मानव उपग्रह लॉन्च होने से कई साल पहले पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में प्रतिबिंबित, अप्राकृतिक वस्तुओं के सौर प्रतिबिंब हैं. सेंचुरी ऑफ ऑब्जर्वेशन (वास्को) के दौरान गायब और दिखने वाले स्रोतों के सहयोग से जुड़े ये खगोलविद अभी भी "एक साथ 9 ट्रांजिएंट्स तारों" के दिखने के मूल कारण को नहीं सुलझा है. वे अब एलियंस को पाने की उम्मीद में 1950 के दशक के इन डिजीटाइज डाटा में सौर प्रतिबिंबों की और अधिक उपस्थिति देखने के उत्सुक हैं. -इनपुट पीआईबी
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