Igas Bagwal 2025 Date: कहां और क्यों मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली? नोट कर लें तिथि, पूजा विधि और पौराणिक कथा

Igas Bagwal 2025 Date: हिमाचल प्रदेश के कु्ल्लू और सिरमौर जिले में कार्तिक अमावस्या की रात मनाई जाने वाली दीवाली के ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली मनाई जाती है.

Igas Bagwal 2025 Date: हिमाचल प्रदेश के कु्ल्लू और सिरमौर जिले में कार्तिक अमावस्या की रात मनाई जाने वाली दीवाली के ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली मनाई जाती है.

author-image
Akansha Thakur
New Update
Igas Bagwal 2025 Date

Igas Bagwal 2025 Date

IgasBagwal 2025 Date:देशभर में दिवाली का उत्सव और खुशियां बीत चुकी हैं लेकिन एक राज्य ऐसा है जहां दिवाली के एक महीने बाद भी बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा जारी है. यह राज्य कोई और नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश है. यह राज्य अपनी समृद्ध लोक संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है. यह दिवाली एक अनोखे रूप से मनाई जाती है जिसे बूढ़ी दिवाली के नाम से जाने जाते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां कार्तिक अमावस्या की रात मनाई जाने वाली दिवाली के ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है. इस साल बूढ़ी दिवाली 20 नवंबर से शुरू होगी और तीन-चार दिनों तक मनाई जाएगी. ऐसे में चलिए जानते हैं कि हिमाचल प्रदेश में क्यों मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली.

Advertisment

बूढ़ी दिवाली क्यों मनाई जाती है?

मान्यता है कि सिरमौर के शिलाई में जब भगवान श्री राम लंका के राजा रावण का वध करके और 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे तो यह खबर पूरे देश में फैल गई. हालांकि पहाड़ी इलाकों में भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर देर से पहुंची. इसीलिए वहां दिवाली एक महीने बाद मनाई जाने लगी.

इस शुभ अवसर पर विवाहित बेटियों और रिश्तेदारों को घर आमंत्रित किया जाता है. कुल्लू जिले के निरमंड के क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली भगवान परशुराम से जुड़ी है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने यहां एक राक्षस का वध किया था और लोगों ने मशालें जलाकर जश्न मनाया था. हर साल बूढ़ी दिवाली पर रस्साकशी और पारंपरिक लोकगीतों के साथ मशाल जुलूस निकाला जाता है.

बूढ़ी दिवाली की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान इंद्र ने महर्षि दधीचि की हड्डियों से बने एक हथियार से वृत्तासुर का वध किया था. इंद्र की विजय पर लोगों ने मार्गशीर्ष अमावस्या की रात को मशाले जलाईं और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया. बूढ़ी दिवाली पर पारंपरिक नृत्य किए जाते हैं और लोकगीत गाए जाते हैं.

बूढ़ी दिवाली पर स्थानीय लोग नाटी, विरह गीत, परोकाड़िया गीत, स्वांग और हुड़क नृत्य करते हैं. इस दौरान शाकुली, चिड़वा, अखरोट और मुदा जैसे पारंपरिक व्यंजन एक दूसरे को बांटे जाते हैं और शुभकामनाएं दी जाती हैं.

बूढ़ी दिवाली पूजा विधि

बूढ़ी दिवाली के दिन ब्रह्रा मुहूर्त में उठें और उसके बाद सन्ना आदि कर लें. इसके बाद अपने घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं फिर भगवान शिव और भगवान विष्णु का पूजान पूरे विधि विधान के साथ करें. बूढ़ी दिवाली की शाम पूरे घर या घर के विशेष कोनों में दीपक जलाएं. इसके बाद शिव चालीसा और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और आखिरी में आरती करें. 

यह भी पढ़ें: Toe Hair Meaning: पैर के अंगूठे पर बाल होने का क्या अर्थ होता है और कैसे होते हैं ऐसे इंसान? जानिए

Where and why celebrated Igas Bagwal 2025 budhi diwali 2025 significance budhi diwali 2025 puja vidhi budhi diwali 2025 upay budhi diwali 2025 shubh muhurt budhi diwali 2025 Igas Bagwal 2025 Date budhi diwali 2025 date
Advertisment