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Skanda Sashti 2025 (AI Image)
Skanda Sashti 2025: हिंदू धर्म में स्कंद षष्ठी व्रत का विशेष महत्व माना जाता है. यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता है. भगवान कार्तिकेय को स्कंद, मुरुगन और सुब्रह्मण्यम के नाम से भी जाना जाता है. यह व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को श्रद्धा के साथ रखा जाता है. दक्षिण भारत में इस पर्व को बड़े उत्साह से मनाया जाता है. दिसंबर 2025 में पौष मास की स्कंद षष्ठी को लेकर कई लोगों में भ्रम बना हुआ है. ऐसे में आइए जानते हैं कि यह व्रत किस दिन रखा जाएगा.
स्कंद षष्ठी 2025: तिथि और समय
पंचांग के अनुसार षष्ठी तिथि की शुरुआत और समाप्ति इस प्रकार है
षष्ठी तिथि प्रारंभ: 25 दिसंबर 2025, गुरुवार को दोपहर 01:42 बजे
षष्ठी तिथि समाप्त: 26 दिसंबर 2025, शुक्रवार को सुबह 01:43 बजे
व्रत की सही तारीख
हिंदू धर्म में उदया तिथि को महत्व दिया जाता है. षष्ठी तिथि का उदय 25 दिसंबर को हो रहा है. इसलिए स्कंद षष्ठी का व्रत 25 दिसंबर 2025, गुरुवार को रखा जाएगा. भगवान कार्तिकेय को लेकर भारत के विभिन्न हिस्सों में मान्यताएं अलग-अलग हैं. उत्तर भारत में कार्तिकेय को भगवान गणेश का बड़ा भाई माना जाता है. दक्षिण भारत में उन्हें गणेश जी का छोटा भाई माना जाता है. यहां वे मुरुगन देव के रूप में पूजे जाते हैं. षष्ठी तिथि भगवान कार्तिकेय की प्रिय तिथि है. इसी कारण इसे कौमारिकी तिथि भी कहा जाता है.
स्कंद षष्ठी की सरल पूजा विधि
अगर आप स्कंद षष्ठी का व्रत कर रहे हैं तो सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. साफ वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लें.पूजा स्थान पर भगवान कार्तिकेय, शिव और पार्वती की प्रतिमा रखें. भगवान को जल, दूध और पंचामृत से अभिषेक करें. पीले वस्त्र, पुष्प, चंदन और अक्षत अर्पित करें. मान्यता है कि दक्षिण भारत में मुरुगन देव को विभूति (भस्म) चढ़ाना शुभ माना जाता है. फल, मिठाई और सूखे मेवों का भोग लगाएं. मंत्रों का जाप करें “ॐ शरवणभवाय नमः” या “ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नो स्कंदः प्रचोदयात्” अंत में घी के दीपक से आरती करें. पूजा के दौरान हुई भूल के लिए क्षमा मांगें.
स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत से जीवन के कष्ट दूर होते हैं. शत्रुओं पर विजय मिलती है. संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन का आशीर्वाद मिलता है. भगवान कार्तिकेय देवताओं के सेनापति हैं. उनकी पूजा से साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है. सच्चे मन से पूजा करने पर रोगों से मुक्ति मिलती है. व्रत के दिन सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें.
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