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शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है. ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तपस्या और ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली. यानी मां ब्रह्मचारिणी वह देवी हैं जिन्होंने कठोर तपस्या और संयम का पालन कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया. इनकी पूजा से भक्त को धैर्य, तप, विवेक और ज्ञान की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति और घर में सुख-शांति मिलती है.
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बेहद शांत और साधना से जुड़ा है. उनका शरीर उज्ज्वल और गोरा है. वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और आभूषण बहुत साधारण होते हैं. दाहिने हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल धारण करती हैं. मां नंगे पांव चलती हैं, जो उनकी कठोर तपस्या का प्रतीक है. इन्हें विद्या और ज्ञान की देवी भी माना जाता है.
पूजा विधि और मुहूर्त
नवरात्रि के दूसरे दिन सुबह स्नान कर सफेद या पीले वस्त्र पहनें. पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर चौकी पर मां की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. चंदन, रोली, अक्षत, फूल और फल अर्पित करें. घी का दीपक जलाकर माता की आरती करें और दुर्गा चालीसा का पाठ करें. पूजा का शुभ समय ब्रह्म मुहूर्त (04:36 AM से 05:23 AM) और अभिजीत मुहूर्त (11:50 AM से 12:38 PM) रहेगा.
भोग और अर्पण
मां ब्रह्मचारिणी को मिसरी, खीर, पंचामृत और दूध से बनी मिठाई का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है. सफेद और पीले रंग के फूल व फल भी अर्पित करें. ऐसी मान्यता है कि इस दिन पीले रंग का वस्त्र अर्पित करने से मानसिक शांति और सफलता प्राप्त होती है.
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र
पूजन के समय भक्त यह मंत्र जप सकते हैं:-
‘दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।’
साथ ही ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः’ का जाप विशेष फलदायी होता है.
मां ब्रह्मचारिणी की आरती
‘जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता,
जय चतुरानन प्रिय सुखदाता।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो,
भक्तों के दुख हरती हो।।’
इस प्रकार नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधक को धैर्य, ज्ञान, विवेक और सफलता की प्राप्ति होती है.
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