Mahakumbh 2025: अक्षयवट त्रिवेणी संगम के निकट स्थित है. यह स्थान गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम का केंद्र होने के कारण तीर्थराज कहलाता है. अक्षय का मतलब है अविनाशी. बरगद के इस वट वृक्ष को अनंत जीवन और स्थायित्व का प्रतीक भी मानते हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी. यह वट वृक्ष सनातन धर्म की अक्षुण्णता और अखंडता का प्रतीक है. अक्षयवट (Akshay Vat) के दर्शन और इसके नीचे की गई पूजा पापों से मुक्ति दिलाती है. महाकुंभ में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यहां स्नान और पूजा का पुण्य सौ गुना अधिक फलदायक माना जाता है. महाकुंभ (Mahakumbh 2025) में लाखों श्रद्धालु अक्षयवट के दर्शन के लिए आते हैं. यहां पूजा-अर्चना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.
साधु-संतों का निवास
महाकुंभ (Mahakumbh 2025) के दौरान अनेक साधु-संत अक्षयवट के नीचे तपस्या और साधना करते हैं. उन्हें ध्यान और आत्मज्ञान के लिए यहां खास ऊर्जा महसूस होती है. त्रिवेणी संगम में स्नान के बाद अक्षयवट (Akshay Vat) की पूजा करना महाकुंभ का एक अनिवार्य अंग है. जीवन में अक्षय सुख, शांति और समृद्धि लाने वाले इस वृक्ष के नीचे ध्यान और भक्ति करने से जीवन-मरण के चक्र से भी मुक्ति मिलती है.
महाकुंभ 2025 में अक्षयवट की पूजा
मकर संक्रांति, बसंत पंचमी, और माघ पूर्णिमा जैसे शुभ दिनों पर अक्षयवट की पूजा का विशेष महत्व होता है. अक्षयवट के दर्शन के समय गंगा जल चढ़ाकर और वट वृक्ष की परिक्रमा करें. महाकुंभ (Mahakumbh 2025) में भीड़ अधिक होती है, इसलिए दर्शन और पूजा के लिए समय का ध्यान रखें. अक्षयवट की पूजा से पहले त्रिवेणी संगम में स्नान करना आवश्यक माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि माता सीता ने वनवास के दौरान अक्षयवट (Akshay Vat) की पूजा की थी और इसे अमरता का वरदान प्राप्त है. यह वृक्ष धरती पर सनातन संस्कृति की अटूट धरोहर का प्रतीक है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)