Kumbh Mela: महाकुंभ इस साल 13 जनवरी से शुरू हो रहा है. हिंदू धर्म में कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ का विशेष महत्व होता है. ग्रहों की स्थिति के आधार पर ये तय किया जाता है कि ये कौन सा कुंभ है और इस बार कहां लगेगा. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेला भारत के चार स्थानों पर लगता है, कहा जाता है कि यहां अमृत की बूंदे गिरी थी. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, महाराष्ट्र के नासिक, मध्य प्रदेश के उज्जैन और उत्तराखंड के हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होता है. महाकुंभ कितने साल में लगता है और इसका धार्मिक महत्व क्या है आइए जानते हैं.
महाकुंभ कितने साल में लगता है?
महाकुंभ, हर 144 साल (12 कुंभ चक्र के बाद) में प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे कुंभ मेले का सबसे बड़ा रूप माना जाता है। प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन तब होता है जब बृहस्पति मेष राशि और सूर्य मकर राशि में होते हैं। हरिद्वार में इस धार्मिक मेले का आयोजन भी ग्रहों की स्थिति के अनुसार होता है. जब बृहस्पति कुंभ राशि और सूर्य मेष राशि में होते हैं तब हरिद्वार में कुंभ मेला लगता है. जब बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में होते हैं तब उज्जैन में कुंभ लगता है और जब बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में होते हैं तब नासिक में कुंभ लगेगा.
कुंभ मेले का धार्मिक महत्व (Religious Importance of Kumbh Mela)
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से उत्पन्न 'कुंभ' शब्द, जिसका अर्थ 'घड़ा' होता है, कुंभ मेले की आधारशिला है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरी थीं, जिस कारण माना जाता है कि ये स्थान पवित्र हो गए। कुंभ मेला इन पवित्र स्थलों पर आयोजित किया जाता है और यह आध्यात्मिक मुक्ति और मोक्ष प्राप्त करने का एक माध्यम माना जाता है।
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)