Vat Savitri Vrat 2021: सावित्री और सत्यवान की कथा के बिना अधूरा है वट सावित्री का व्रत, यहां पढ़ें कथा
आज सभी सुहागिन महिलाएं वट सावित्री का व्रत रख बगरद के पेड़ की पूजा अर्चना करेंगी. हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व है. कहते है जो भी शादीशुदा महिला वट सावित्री का व्रत रखती हैं, उसे अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
नई दिल्ली:
आज सभी सुहागिन महिलाएं वट सावित्री का व्रत रख बगरद के पेड़ की पूजा अर्चना करेंगी. हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व है. कहते है जो भी शादीशुदा महिला वट सावित्री का व्रत रखती हैं, उसे अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद प्राप्त होता है. साथ ही व्रत करने वाली महिलाओं के पति पर आने वाली सभी मुसीबतें दूर हो जाती हैं. माना जाता है कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती है. इस दिन सुहागिन महिलाएं बरगद के वृक्ष के चारों ओर घूमकर इस पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं. वट सावित्री का व्रत रखने से सुहागिन औरतों का सुहाग सलामत रहता है और उनपर आई सारी बला दूर हो जाती है.
और पढ़ें: Vat Savitri Vrat 2021: वट सावित्री व्रत का जानें शुभ मुहूर्त, नोट कर लें पूजा सामग्री की लिस्ट
वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त
वट सावित्री व्रत, अमावस्या तिथि प्रारंभ : 9 जून 2021 को दोपहर 01:57 बजे से
वट सावित्री व्रत , अमावस्या तिथि समाप्त : 10 जून 2021 को शाम 04:20 बजे
वट सावित्री व्रत का पारण : 11 जून 2021 को
वट सावित्री व्रत कथा
भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी. उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं. अठारह वर्षों तक वह ऐसा करते रहे. इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी. सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया. कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई. योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा.
सावित्री तपोवन में भटकने लगी. वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था. उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया. ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं. एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी.
ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए. सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए.
इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है. सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया.
सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी. समय बीतता चला गया. नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था. वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं. उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया. नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया. हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं. जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये. तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये. सावित्री अपना भविष्य समझ गईं.
सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे. सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं. यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है. लेकिन सावित्री नहीं मानी.
सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो. तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो. सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें. यमराज ने कहा ऐसा ही होगा. जाओ अब लौट जाओ. लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ. सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा. सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें. यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ, लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं.
यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा. इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा. यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया.सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है. यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े. यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था.
सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े. दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है. इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Akshaya Tritiya 2024: 10 मई को चरम पर होंगे सोने-चांदी के रेट, ये है बड़ी वजह
-
Abrahamic Religion: दुनिया का सबसे नया धर्म अब्राहमी, जानें इसकी विशेषताएं और विवाद
-
Peeli Sarso Ke Totke: पीली सरसों के ये 5 टोटके आपको बनाएंगे मालामाल, आर्थिक तंगी होगी दूर
-
Maa Lakshmi Mantra: ये हैं मां लक्ष्मी के 5 चमत्कारी मंत्र, जपते ही सिद्ध हो जाते हैं सारे कार्य