Varuthini Ekadashi 2021: वरुथिनी एकादशी व्रत का है खास महत्व, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

शुक्रवार यानि की 7 मई को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi 2021 ) मनाई जाएगी. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की हर इच्छा पूर्ण होती है. इसके साथ ही उन्हेंने बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती हैं.

शुक्रवार यानि की 7 मई को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi 2021 ) मनाई जाएगी. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की हर इच्छा पूर्ण होती है. इसके साथ ही उन्हेंने बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती हैं.

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Vineeta Mandal
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Varuthini Ekadashi 2021

Varuthini Ekadashi 2021 ( Photo Credit : सांकेतिक चित्र)

शुक्रवार यानि की 7 मई को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi 2021 ) मनाई जाएगी. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की हर इच्छा पूर्ण होती है. इसके साथ ही उन्हेंने बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती हैं.  वरुथिनी एकदाशी का व्रत करने से भगवान नारायण की कृपा सदैव बनी रहती हैं.  हिंदू धर्म में एकादशी का खास महत्व होता है.  हिंदू पंचाग के अनुसार हर महीने में दो बार एकादशी होती है. एकादशी के दिन लोग भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं. वैशाख माह में पड़ने वाली एकादशी का विशेष महत्व माना गया है. 

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वरुथिनी एकादशी  शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ- 6 मई 2021 (गुरुवार) दोपहर 02 बजकर 10 मिनट से

एकादशी तिथि समाप्त- 07 मई 2021 (शुक्रवार) शाम 03 बजकर 31 मिनट तक

वरुथिनी पूजा विधि

एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान कर के साफ-सुथरे कपड़े पहन लें. इसके बाद घर के मंदिर की सफाई कर के दीया जलाएं. अब भगवान विष्णु को शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान कराएं और उन्हें नए वस्त्र धारण करवाएं. अब भगवान विष्णु की विधिवत् पूजा-अर्चना करें. भगवान नारायण की मूर्ति पर तुलसी, दूर्वा, बिल्वपत्र और शमी पत्र अर्पित करें. इसके बाद विष्णु जी को केला, हलवा और खीर का भोग लगाएं. विष्णु जी की आरती के साथ पूजा का समापन करें. एकादशी के अगले दिन अपना व्रत खोलें.

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वरुथिनी एकादशी कथा

पौराणिक कथा के मुताबिक, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था. जिसके कारण उनके शरीर का अंश धरती माता के अंदर समा गया. मान्यता है कि जिस दिन महर्षि का शरीर धरती में समा गया था, उस दिन एकादशी थी. कहा जाता है कि महर्षि मेधा चावल और जौ के रूप में धरती पर जन्म लिया. यही वजह कि चावल और जौ को जीव मानते हैं इसलिए एकादशी के दिन चावल नहीं खाया जाता. माना जाता है कि एकादशी के दिन चावल का सेवन करने से महर्षि मेधा के मांस और रक्त के सेवन करने जैसा है.

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