logo-image

Swastik Significance 2023 : अगर पाना चाहते हैं सभी बाधाओं से छुटकारा, तो इस दिशा में बनाएं स्वास्तिक

सनातन धर्म में कुछ ऐसे चिह्नों का जिक्र किया गया है.

Updated on: 06 Apr 2023, 10:33 AM

नई दिल्ली :

Swastik Significance 2023 : सनातन धर्म में कुछ ऐसे चिह्नों का जिक्र किया गया है, जिन्हे बहुत शुभ माना जाता है. इन चिह्नों को घर के मुख्य द्वार पर लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है और धन वृद्धि भी होती है. जिसमें से एक स्वास्तिक है. स्वास्तिक दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें सु का अर्थ शुभ है और अस्ति का अर्थ होना है, यानी कि सभी व्यक्ति का कल्याण हो, शुभ हो. हिंदू धर्म में जब भी कोई शुभ काम किया जाता है, तो स्वास्तिक का प्रयोग अवश्य किया जाता है. स्वास्तिक भगवान गणेश का प्रतीक चिह्न माना गया है. तो ऐसे में आइए आज हम आपको अपने इस लेख में स्वास्तिक के बारे में विस्तार से बताएंगे, सात ही इसे घर की किस दिशा में बनाना शुभ माना जाता है.

घर की इस दिशा में स्वास्तिक बनाना माना जाता है शुभ 
वास्तु शास्त्र में स्वास्तिक सिंदूर या फिर हल्दी से बनाना बहुत शुभ होता है. लेकिन अगर आप घर में बनाते समय चिह्नों का ध्यान रखते हैं, तो ये बहुत जरूरी है. आप इस चिह्न को बनाने के लिए घर की उत्तर पूर्व दिशा का इस्तेमाल कर सकते हैं. स्वास्तिक का चिह्न पूजा स्थान पर बनाएं या फिर घर के मुख्य द्वार पर बनाएं. इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है और वास्तु दोष से भी छुटकारा मिल जाता है. घर पर कभी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है. 

ये भी पढ़ें - Hanuman Janmotsav 2023 : आज संध्या के समय करें ये उपाय, व्यापार में होगी वृद्धि

स्वास्तिक बनाते समय रखें इन बातों का ध्यान 

घर के मुख्य द्वार और घर के मंदिर में स्वास्तिक बनाने से घर के वास्तु दोष दूर हो जाते हैं. घर के मुख्य द्वार और घर के मंदिर में हल्दी से स्वास्तिक बनाएं और इसके नीचे शुभ, लाभ लिखें. ऐसा माना जाता है कि इससे घर में सकारात्मकता का संचार होता है और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलता है. 
स्वास्तिक का चिह्न बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि ये 9 अंगुली लंबा और चौड़ा होना चाहिए. 

ये भी पढ़ें - Hanuman Jayanti 2023 : हनुमान जी की पूजा में महिलाएं न करें ये काम, एक गलती से नाराज हो सकते हैं बजरंगी

स्वास्तिक बनाते समय इस मंत्र का करें प्रयोग 
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः॥ स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥