Shiv Ji Ki Aarti: ऐसे पढ़ें भगवान शिव की आरती, हर मनोकामना होगी पूरी

Shiv Ji Ki Aarti: शिव आरती को विशेषत: शिव पूजा के समय गाई जाती है, जिसमें भगवान शिव की महिमा और शक्ति की प्रशंसा की जाती है. भगवान शिव की आरती का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह आरती भगवान शिव की प्रशंसा करती है और उनकी महिमा को गाती है. इसके माध्यम स

Shiv Ji Ki Aarti: शिव आरती को विशेषत: शिव पूजा के समय गाई जाती है, जिसमें भगवान शिव की महिमा और शक्ति की प्रशंसा की जाती है. भगवान शिव की आरती का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह आरती भगवान शिव की प्रशंसा करती है और उनकी महिमा को गाती है. इसके माध्यम स

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Inna Khosla
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Shiv Ji Ki Aarti

Shiv Ji Ki Aarti( Photo Credit : News Nation)

Shiv Ji Ki Aarti: शिव आरती को विशेषत: शिव पूजा के समय गाई जाती है, जिसमें भगवान शिव की महिमा और शक्ति की प्रशंसा की जाती है. भगवान शिव की आरती का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह आरती भगवान शिव की प्रशंसा करती है और उनकी महिमा को गाती है. इसके माध्यम से भक्त भगवान शिव के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं और उनसे अनन्य भाव से जुड़ते हैं. शिव आरती का पाठ करने से भक्त की मनोयोगिता में वृद्धि होती है, उनकी मनोवैज्ञानिक स्थिति में सुधार होता है और उन्हें शांति और संतुष्टि की अनुभूति होती है. शिव आरती का पाठ करने से मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ होता है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है. इस आरती के माध्यम से भक्त अपनी पूजा और भक्ति का अर्पण करते हैं और भगवान शिव से अपनी मनोकामनाएँ मांगते हैं. इस प्रकार, शिव आरती का पाठ करने से भक्त का जीवन में उत्कृष्टता, ध्यान, और आनंद का अनुभव होता है.. एक प्रसिद्ध शिव आरती का पाठ है:

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जय शिव ओंकारा, हर जय शिव ओंकारा.
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे.
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुजा धारी.
सोहें त्रिभुवन राजा, मृगधारी॥
अक्षमाला वणमाला रुद्रमाला धारी.
चंदनमृगमध सोहे, भले शाशित माला॥
शेष मृगमध सोहे, चूल्हेकर माला.
ध्वजवाजा फनवाजा काहे का वाजा॥
सानकादिक ब्रह्मादिक संताधिकैं साजे.
चारों युग पलट के, धरती अधबाजे॥
ज्यों की त्यों धारी शशि की जटा वीराजे.
ज्यों की त्यों सिन्धु मद्ध्ये काम दलीलाजे॥
हार निलकंठ दमरू धरि ध्यान धारा.
सुबह शाम जो ध्यावे, उर ध्वारा॥
ताकरोरघुंटे जूते विराजे.
कांस्यबासन विराजे, मृगमद सोहे॥
संकर सुवन केसरी नंदन.
तेज प्रताप महा जगवंदन॥
जो नर मानव अरती गावें.
बास्यों नारद असि संग लावें॥
संगेन यम कुबेर दिगपाल.
जहाँ ते कोई नहिं आरती पाठ करें॥
तासों यम राजा संग धावत.
नमामीश्वर अँगि कै आरती बावत॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव आरती करताहूं.
ध्यान निरंजन निर्वाण रूपे॥

आरती कीजै हरि हर हरि॥

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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