Masik Shivaratri : आज करें महादेव की अराधना, मिलेगा मनचाहा फल, जानें पूजा विधि और मुहूर्त

आज यानि कि गुरुवार को आषाढ़ मास की मासिक शिवरात्रि मनाई जा रही है. इस दिन भगवान शिव की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, मासिक शिवरात्रि पर भोलेनाथ की अराधना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं.

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Vineeta Mandal
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mythological story of the marriage of Lord Shiva and Mother Parvati

मासिक शिवरात्रि 2021( Photo Credit : फाइल फोटो)

आज यानि कि गुरुवार को आषाढ़ मास की मासिक शिवरात्रि (Masik Shivaratri July 2021) मनाई जा रही है. इस दिन भगवान शिव की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, मासिक शिवरात्रि पर भोलेनाथ की अराधना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं. वहीं माता पार्वती और शिव की साथ में पूजा करने से जीवन की सारी तकलीफ दूर हो जाती हैं. हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का व्रत काफी फलदायी माना जाता है. उपसाकों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है. 

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आषाढ़ की मासिक शिवरात्रि  शुभ मुहूर्त

आषाढ़ की मासिक शिवरात्रि प्रारंभ- गुरुवार, 8 जुलाई को सुबह 03 बजकर 20 मिनट से

मासिक शिवरात्रि समापन- शुक्रवार, 09 जुलाई को सुबह 05 बजकर 16 मिनट तक

मासिक शिवरात्रि पूजा विधि

मासिक शिवरात्रि के दिन स्नान कर के साफ-सुथरे कपड़े पहन लें. इसके बाद मंदिर या पूजा घर गंगाजल से शुद्ध करें. अब भगवान शिव और माता गौरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद भगलाव के सामने ध्यान लगाएं और व्रत का संकल्प लें. मासिक शिवरात्रि की पूजा शुरू करें. शिवलिंग का जल, शुद्ध घी और दूध से रुद्राभिषेक करें. फिर भगवान शिव जी पर बेल पत्र, श्रीफल और धतूरा चढ़ाएं. शिव पुराण या शिवाष्ट का पाठ करें. पूजा का समापन शिव चालीसा और आरती के साथ करें.

शिव चालीसा- 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुंडल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुंडमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघंबर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नंदि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शंभु सहाई॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पंडित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥ 

॥दोहा॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमंत ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

भगवान शिव की आरती-

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥

Source : News Nation Bureau

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