Aja Ekadashi Vrat Katha : आज है अजा एकादशी का व्रत, जानें ये कथा और इसका महत्त्व

Aja Ekadashi Vrat Katha: भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित अजा एकादशी का व्रत अगर आप रख रहे हैं तो उससे पहले अजा एकादशी व्रत कथा भी जान लें.

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Inna Khosla
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Aja Ekadashi Vrat Katha( Photo Credit : Social Media)

Aja Ekadashi Vrat Katha: भाद्रपद कृष्ण एकादशी तिथि 9 सितंबर शनिवार को शाम 07:17 बजे से शुरू हो रही है और ये तिथि अगले दिन 10 सितंबर को रात 09:28 बजे तक रहेगी. अजा एकादशी का व्रत 10 सितंबर रविवार को रखा जाएगा. हर महीने एकादशी के दो व्रत आते हैं. भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की इस एकादशी का विशेष महत्त्व है. कहते हैं इस दिन पूजा करने से बैकुंठ की प्राप्ति होती है. सारे पाप नष्ट होते हैं और स्वर्गलोक प्राप्त होता है. इस साल अजा एकादशी के दिन दो शुभ योग भी बन रहे हैं. लाभ-उन्नति योग और अमृत-सर्वोत्तम योग. इसका फायदा अगर आपने उठा लिया तो आपको भी पुण्यफल प्राप्त होगा और आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी. अजा एकादशी का व्रत अगर आप रख रहे हैं तो इसकी व्रत कथा क्या है आइए आपको ये भी बताते हैं. 

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अजा एकादशी व्रत कथा

अजा एकादशी के व्रत की कथा राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी है. ऐसा कहा जाता है कि अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध राजा हरिश्चन्द्र की एक बार देवताओं ने परीक्षा लेने के बारे में सोचा. राजा ने सपना देखा कि ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना राजपाट दान कर दिया है.

बस फिर क्या था राजा अगले दिन उठे और उन्होंने अपना सारा राज-पाठ ऋषि विश्वामित्र को सौप दिया. जब वो यहां से जाने लगे तो ऋषि विश्वमित्र  ने राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा स्वरुप 500 स्वर्ण मुद्राएं दान में मांगी. राजा ने उनसे कहा कि पांच सौ क्या, आप जितनी चाहे स्वर्ण मुद्राएं ले लीजिए. इस पर विश्वामित्र हंसने लगे और राजा को याद दिलाया कि राजपाट के साथ राज्य का कोष भी वे दान कर चुके हैं और दान की हुई वस्तु दोबारा दान नहीं की जाती.

तब राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचकर स्वर्ण मुद्राएं हासिल की, लेकिन वो भी पांच सौ नहीं हो पाईं. राजा हरिश्चंद्र ने खुद को भी बेच डाला और सोने की सभी मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दीं. राजा हरिश्चंद्र ने खुद को जहां बेचा था वह श्मशान का चांडाल था. चांडाल ने राजा हरिश्चन्द्र को श्मशान भूमि में दाह संस्कार के लिए कर वसूली का काम दे दिया.

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एक दिन राजा हरिश्चंद्र ने एकादशी का व्रत रखा हुआ था. आधी रात का समय था और राजा श्मशान के द्वार पर पहरा दे रहे थे. बेहद अंधेरा था, इतने में ही वहां एक लाचार और निर्धन स्त्री जो उनकी पत्नी थी बिलखते हुए पहुंची जिसके हाथ में अपने पुत्र का शव था. राजा हरिश्चन्द्र ने अपने धर्म का पालन करते हुए पत्नी से भी पुत्र के दाह संस्कार के लिए कर (पैसे) मांगा. पत्नी के पास कर चुकाने के लिए धन नहीं था इसलिए उसने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़कर राजा का दे दिया. उसी समय भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा, “हे हरिश्चंद्र, इस संसार में तुमने सत्य को जीवन में धारण करने का उच्चतम आदर्श स्थापित किया है. तुम्हारी कर्त्तव्यनिष्ठा महान है, तुम इतिहास में अमर रहोगे।” इतने में ही राजा का बेटा रोहिताश जीवित हो उठा. ईश्वर की अनुमति से विश्वामित्र ने भी हरिश्चंद्र का राजपाट उन्हें वापस लौटा दिया. 

इस तरह अगर आप भी अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, ईमानदार रहते हैं तो एक ना एक दिन भगवान आपकी मनोकामना पूरी करते हैं. आपको फलस्वरूप वो सब देते हैं जिसकी आपको चाह होती है. अजा एकादशी का व्रत रखने वाले भक्तों को भी कभी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होगी. 

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