logo-image

Nirjala Ekadashi 2022 Katha: निर्जला एकादशी पर पढ़ें ये कथा, विष्णु जी बरसाएंगे धन बरसेगा अथाह

निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi 2022) का व्रत कल 10 जून, शुक्रवार को रखा जाएगा. इस दिन निर्जला एकादशी व्रत कथा (nirjala ekadashi 2022 katha) अवश्य सुननी चाहिए. तो, चलिए जान लें उस कथा के बारे में. 

Updated on: 09 Jun 2022, 01:52 PM

नई दिल्ली:

निर्जला एकादशी (nirjala ekadashi 2022) का व्रत कल 10 जून, शुक्रवार को रखा जाएगा. इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है. इस व्रत को भीम ने भी रखा था, इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी (bhimeseni ekadashi 2022) कहते हैं. साल 2022 में ये 10 जून को सुबह 7 बजकर 25 मिनट से शुरू हो रही है. जो अगले दिन सुबह 5 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. इस दिन का व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से वर्ष के सभी एकादशी व्रतों का पुण्य प्राप्त होता है. इस दिन निर्जला एकादशी व्रत कथा (nirjala ekadashi) अवश्य सुननी चाहिए. तो, चलिए जान लें उस कथा के बारे में. 

यह भी पढ़े : Nirjala Ekadashi 2022 Dos and Donts: निर्जला एकादशी के दिन की गई ये गलतियां बन जाती हैं भीषण अपराध, इन बातों को अनदेखा करना देता है अलक्ष्मी को बुलावा

निर्जला एकादशी व्रत कथा-
प्राचीन काल की बात है एक बार भीम ने वेद व्यास जी से कहा कि उनकी माता और सभी भाई एकादशी व्रत रखने का सुझाव देते हैं, लेकिन उनके लिए कहां संभव है कि वह पूजा-पाठ कर सकें, व्रत में भूखा भी नहीं रह सकते. इस पर वेदव्यास जी ने कहा कि भीम, अगर तुम नरक और स्वर्ग लोक के बारे में जानते हो, तो हर माह को आने वाली एकादशी के दिन अन्न मत ग्रहण करो. तब भीम ने कहा कि यदि पूरे वर्ष में कोई एक व्रत हो तो वह रह भी सकते हैं, लेकिन हर माह व्रत रखना संभव नहीं है क्योंकि उनको भूख बहुत (Nirjala Ekadashi 2022 vrat Katha) लगती है.  

यह भी पढ़े : Nirjala Ekadashi 2022 Vrat Niyam And Shubh Yog: निर्जला एकादशी पर इन नियमों का करेंगे पालन, भगवान विष्णु देंगे आशीर्वाद होकर प्रसन्न

उन्होंने वेदव्यास जी से निवेदन किया कोई ऐसा व्रत हो, जो पूरे एक साल में एक ही दिन रहना हो और उससे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए. तब व्यास जी ने भीम को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में बताया. निर्जला एकादशी व्रत में अन्न व जल ग्रहण करने की मनाही होती है. द्वादशी को सूर्योदय के बाद स्नान करके ब्राह्मणों को दान देना चाहिए और भोजन कराना चाहिए फिर स्वयं व्रत पारण करना चाहिए. इस व्रत को करने व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. वेद व्यास जी की बातों को सुनने के बाद भीमसेन निर्जला एकादशी व्रत के लिए राजी हो गए. उन्होंने निर्जला एकादशी व्रत किया. इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी (Nirjala Ekadashi katha) कहा जाने लगा.