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Kawad Yatra 2023: जानें कैसे हुई थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत, पढ़ें...

Kawad Yatra 2023 : इस साल दिनांक 04 जुलाई दिन मंगलवार से सावन माह की शुरुआत हो रही है. हिंदू धर्म में इस माह को बहुत ही पवित्र माना जाता है. इस माह में भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से वह जल्द प्रसन्न होते हैं.

Updated on: 30 Jun 2023, 06:14 PM

नई दिल्ली :

Kawad Yatra 2023 : इस साल दिनांक 04 जुलाई दिन मंगलवार से सावन माह की शुरुआत हो रही है. हिंदू धर्म में इस माह को बहुत ही पवित्र माना जाता है. इस माह में भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से वह जल्द प्रसन्न होते हैं. बता दें, भगवान भोलेनाथ की उपासना करने के लिए इस बार सावन एक महीना का नहीं, बल्कि दो महीने का है. वहीं सावन माह की शुरूआत होते ही कांवड़ यात्रा की भी शुरूआत हो जाती है. इस माह में विधिवत तरीके के पूजा-पाठ करने के साथ-साथ कई शिवभक्त पैदल चलकर कांवड़ यात्रा निकालते हैं और गंगा नदी का पवित्र जल कांवड़ में भरकर लाते हैं. ऐसी मान्यता है कि सावन में पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि के दिन गंगा जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूरी हो जाती है. इस साल सावन 59 दिनों का है, जिसमें पहली मासिक शिवरात्रि, दूसरी शिवरात्रि दिनांक 14 अगस्त को है. लेकिन इस सबके बीच सवाल यह है कि कांवड़ यात्रा निकालने की शुरुआत कैसे हुई. तो आइए आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि पहला कांवड़ यात्रा किसने निकाली थी, इसके पीछे की कहानी क्या है. 

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एक बार कामधेनु को पाने के लालच में राजा सहस्त्रबाहुने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी थी. फिर पिता की हत्या का बदला लेने के लिए परशुराम ने राजा की भुजाओं को काट दिया, जिससे उसकी भी मृत्यु हो गई. भगवान परशुराम की कठोर तपस्या के बाद ऋषि जमदग्नि को जीवनदान मिल गया. तब उन्होंने अपने पुत्र परशुराम को सहस्त्रबाहु की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करने को कहा. जिसके बाद परशुराम मीलों पैदल यात्रा कर कांवड़ में गंगाजल भरकर लाए. उन्होंने आश्रम के पास ही शिवलिंग की स्थापना कर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था. इसी कारण से भगवान परशुराम को संसार का पहला कांवड़िया कहा जाता है.

वहीं  धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने समुद्र मंथन में निकले विष को पी लिया था. जहर के नकारात्मक प्रभावों ने भोलेनाथ को असहज कर दिया था. भगवान शंकर को इस पीड़ा से मुक्त कराने के लिए उनके परमभक्त रावण ने कांवड़ में गंगा जल भरकर कई बरसों तक महादेव का जलाभिषेक किया था. जिसके बाद भगवान शिव जहर के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हो गए थे. उनके गले में हो रही जलन खत्म हो गई थी. तभी से कांवड़ यात्रा का आरंभ माना गया और रावण को पहला कांवड़िया माना जाता है.