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Kaal Bhairav Jayanti 2022: अगर कष्टों ने आपके घर को लिया है घेर, तो 16 नवंबर को करें ये उपाय

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कई ऐसे पर्व है, जिसका विशेष महत्त्व है

Updated on: 14 Nov 2022, 01:41 PM

highlights

  • कालाष्टमी का महत्त्व क्या है?
  • कब है शुभ मुहूर्त?
  • पूजा विधि क्या है?

नई दिल्ली:

Kaal Bhairav Jayanti 2022 : धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कई ऐसे पर्व है, जिसका विशेष महत्त्व है. उन्हीं में एक कालाष्टमी भी है. बता दें, कालाष्टमी हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाने वाला पर्व है. इस दिन कालभैरव की पूजा के साथ-साथ भगवान शिव की विधिवत पूजा-अर्चना करने से विशेष लाभ मिलता है. ऐसे में इस दिन भैरव चालिसा का पाठ करना बेहद जरूरी है, लेकिन इसके साथ व्रत रखने का क्या महत्त्व है, पूजा विधि क्या है, इस दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, ये सब हम आपको बताने वाले हैं. 

कालाष्टमी का महत्त्व क्या है?
इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से आपको कभी भय दोष नहीं लगेगा, अगर आपको कोई रोग परेशान कर रहा है तो आपको रोग से मुक्ति पाने के लिए कुत्ते को रोटी खिलाएं, क्योंकि भगवान भैरव का सवारी कुत्ता है. इस दिन कुत्ते को रोटी खिलाने से भगवान भैरव बेहद प्रसन्न रहते हैं और आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. वहीं पौराणिक कथा के अनुसार आपको बता दें, जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश में बहस छिड़ गई थी कि सबसे पूजनीय कौन है? तब उसके निवारण के लिए भगवान शिव और भगवान विष्णु को बुलाया गया,  तब इन दोनों में भी कहासुनी हो गई. उसके बाद बहस को लेकर भगवान शिव को इतना ज्यादा क्रोध आया गया कि भगवान शिव ने रौद्र रूप धारण कर ब्रह्मा जी के पांच सिर में से एक सिर को धड़ से अलग कर दिया और तभी से ब्रह्मा जी के केवल चार ही सिर विद्यमान है. 

कब है शुभ मुहूर्त?
कालभैरव जयंति दिनांक 16 नवंबर 2022 दिन बुद्धवार को सुबह 05:49 मिनट से लेकर अगले दिन यानी की 17 नवंबर 2022 दिन गुरुवार को सुबह 07:57 तक रहेगा.

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पूजा विधि क्या है?
इस दिन जब आप भगवान भैरव की पूजा कर रहे हैं, तो मां दुर्गा की पूजा करना बेहद जरूरी है. इस दिन माता पार्वती और शिव की कथा अवश्य सुने, इसके अलावा 108 बार भैरव मंत्र का जाप करें. इससे आपकी सारी मनोकामना पूरी होगी और घर में कभी दरिद्रता नहीं आएगी.

भैरव मंत्र - ओम कालभैरवाय नम:। ओम ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं। ओम भ्रं कालभैरवाय फट्। जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा