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तो ये भेद था भगवान कृष्ण का नाम कृष्ण रखे जाने का

सनातन धर्म में जन्माष्टमी का विशेष महत्‍व है. इस बार जन्माष्टमी का संयोग 30 अगस्त को बन रहा है. ऐसे में हम आपके लिए जन्माष्टमी के पर्व पर कृष्ण नाम से ही जुड़ा एक बड़ा ही रोचक भेद लेकर आये हैं.   

Updated on: 29 Aug 2021, 12:52 PM

नई दिल्ली :

भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को होने के कारण इसको कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं. भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में अष्टमी तिथि का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं. इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति,आयु और समृद्धि की प्राप्ति होती है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है. जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर हो वे आज विशेष पूजा से लाभ पा सकते हैं. इस बार जन्माष्टमी का संयोग 30 अगस्त को बन रहा है.

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सनातन धर्म में इस त्‍योहार का विशेष महत्‍व होता है. इस दिन भगवान कृष्‍ण के भक्‍त विधि विधान से उनका व्रत करते है. देश भर के सभी कृष्‍ण मंदिरों में जन्‍माष्‍टमी विशेष धूमधाम के साथ मनाई जाती है. इस अवसर पर लोग घरों में और मंदिरों में झांकियां सजाते हैं. घर में बाल गोपाल का जन्‍मोत्‍सव मनाते हैं और घर के छोटे छोटे बालकों को कृष्ण रूप में तैयार करते हैं. यानी कि एक वाक्य में कहें तो धरा से अम्बर तक पूरा वातावरण कृष्णमय हो जाता है. ऐसे में हम आपके लिए जन्माष्टमी के पर्व पर भगवान श्री कृष्ण का नाम कृष्ण क्यों, कब और किसने रखा और इससे जुड़ी अन्य रोचक बातें लेकर आए हैं. 

                                                         

शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि, बाल गोपाल कान्हा और बलदाऊ के जन्म के बाद नन्द बाबा माता यशोदा और देवी रोहिणी के साथ महर्षि गर्ग के आश्रम पहुंचे थे. जहां उन्होंने ऋषि गर्ग के सामने दोनों बालकों के नामकरण संस्कार की इच्छा जताते हुए प्रार्थना की. आचार्य गर्ग प्राचीन काल के बड़े ही महान विद्वान थे और उनके पास दिव्यदृष्टि भी थी. वह पहले ही समझ गए थे कि ये दोनों बालक दिव्य हैं. महर्षि गर्ग को ये पूर्व विधित था कि जहां एक ओर बड़े भैया बलदाऊ शेष नाग का अवतार हैं वहीं दूसरी ओर श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं. 

                                                      

दोनों बालकों को देख महर्षि गर्ग बेसुध हो गए और एक टक दोनों को देखते रहे. इसके बाद नन्द बाबा के आग्रह पर आश्रम की ही गौशाला में सूक्ष्म रूप में ऋषि गर्ग ने दोनों बालकों का नामकरण संस्कार व हवन शुरू किया. विधि पूर्ण होने के बाद देवी रोहिणी के पुत्र को गोद में लेकर ऋषि गर्ग ने उन्हें बलराम नाम दिया. बलदाऊ का ये नाम रखने के पीछे का कारण उन्होंने यह बताया कि यह बालक बहुत ही बलवान और शक्तिशाली होगा. पूरी सृष्टि में इस बालक को कोई भी परास्त नहीं कर पाएगा. 

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बलदाऊ के नामकरण के बाद, महर्षि गर्ग ने भाव विभोर होकर माता यशोदा के लाल को गोद में लिया. बालक का तेजस्वी, दिव्य और करुणामयी रूप देख ऋषि गर्ग मन ही मन उनकी पूजा करने लगे. और बहुत प्रसन्न होकर बोले कि इस बालक का नाम कृष्ण होगा. महर्षि ने कारण बताते हुए कहा कि इस अवतार में इस दिव्य बालक का वर्ण काला है, इसलिए इसका नाम कृष्ण पड़ा है. तो इस प्रकार काला रंग होने के कारण बाल गोपाल का नाम कृष्ण रखा गया.