Jamat Ul Vida 2024: जमात उल विदा रमजान का आखिरी शुक्रवार है, जो मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है. इस बार 5 अप्रैल 2024 को ये मनाया जाएगा. इस दिन, मुसलमान विशेष प्रार्थना करते हैं, माफी मांगते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं. 2024 में जमात उल विदा 5 अप्रैल को मनाई जाएगी. यह रमजान का आखिरी जुमा है और इसे अलविदा जुम्मा भी कहा जाता है. इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी संख्या में मस्जिदों में जाते हैं और नमाज पढ़ते हैं. इस दिन लोग अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और अल्लाह से दुआ करते हैं. सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं. इसके बाद वे मस्जिद में जाते हैं और नमाज पढ़ते हैं. नमाज के बाद लोग इमाम से दुआ करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं. कुछ लोग इस दिन रोजा भी रखते हैं. जमात उल विदा का कोई निश्चित समय नहीं होता है. यह रमजान के आखिरी जुमे को मनाया जाता है. इस दिन मस्जिदों में बहुत भीड़ होती है, इसलिए आपको पहले से ही जाने की तैयारी करनी चाहिए.
महत्व: जमात उल विदा रमजान के आखिरी दस दिनों का हिस्सा है, जिन्हें अशरा-ए-अखीरा कहा जाता है. ये दिन विशेष रूप से आध्यात्मिकता और भक्ति के लिए समर्पित होते हैं. इस दिन, मुसलमान गुनाहों की माफी के लिए विशेष प्रार्थना करते हैं और अगले साल रमजान का अनुभव करने की दुआ करते हैं. यह दिन एकता और भाईचारे का भी प्रतीक है, जब मुस्लिम एक साथ मस्जिद में जाते हैं और प्रार्थना करते हैं.
उत्सव: जमात उल विदा के दिन, मुस्लिम सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं. वे मस्जिद में जाते हैं और जुम्मे की नमाज अदा करते हैं. नमाज के बाद, वे इमाम की बात सुनते हैं, जो रमजान के महत्व और आने वाले साल के लिए शुभकामनाओं पर आधारित होती है. वे एक दूसरे को गले लगाते हैं और शुभकामनाएं देते हैं. गरीबों को दान दिया जाता है. कुछ लोग रमजान के दौरान किए गए उपवासों को खत्म करते हैं.
दिल्ली में, जामा मस्जिद और अलविदा जुम्मा मस्जिद में जमात उल विदा के लिए विशेष प्रार्थना आयोजित की जाती हैं. मुंबई में, हाजी अली दरगाह और ताजमहल पैलेस होटल में भी इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. लखनऊ में, अमीनाबाद और इमामबाड़ा क्षेत्र में जमात उल विदा के लिए विशेष बाजार लगते हैं.
जमात उल विदा की तारीख हर साल बदलती है, क्योंकि यह चांद के दिखने पर निर्भर करती है. इस दिन मस्जिदों में बहुत भीड़ होती है, इसलिए आपको पहले से ही जाने की योजना बनानी चाहिए. आप घर पर भी जमात उल विदा की प्रार्थना कर सकते हैं. जमात उल विदा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक त्योहार भी है. यह दिन लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें एक दूसरे के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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Source : News Nation Bureau