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जब राख से हुआ अंत और गुलाल में जन्में कामदेव, होली की अनोखी कथा ( Photo Credit : Social Media)
होली हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है. हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली का त्योहार हर्ष, उमंग और उल्लास से मनाया जाता है. इस दिन लोग आपसी मनमुटावों को भुलाकर एक-दूसरे के साथ होली खेलते हैं. हिंदू धर्म के अनुसार, होली को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में मनाया जाता है. होली को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं जिनमें से एक है कामदेव और भगवान शिव की. आइए जानते हैं इस कथा के बारे में.
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पौराणिक कथाओं के मुताबिक, देवी पार्वती शिव जी से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी ओर नहीं गया. पार्वती की इन कोशिशों को देखकर प्रेम के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया, जिसके कारण शिव की तपस्या भंग हो गई. तपस्या भंग होने की वजह से शिव नाराज हो गए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि से कामदेव भस्म हो गए.
कामदेव की पत्नी ने भगवान शिव की पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया और बताया कि कामदेव निर्दोष थे बल्कि वे केवल माता पार्वती की मदद कर रहे थे. अपनी गलती का एहसास होने पर शिवजी ने कामदेव को अगले जन्म में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया. माना जाता है कि भगवान शिव तपस्या भंग होने की खुशी में सभी देवताओं ने रंगों से उत्सव मनाया. इसी से होली की शुरुआत हुई.
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होली से जुड़ी राधा-कृष्ण की कहानी
रंगवाली होली को राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वह राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं. यशोदा ने मजाक में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा. इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है.