Holi 2022: यहां जलते मुर्दों पर खेली जाती है होली, गुलाल नहीं उड़ता है राख का गुबार

जहां एक तरफ पूरी दुनिया में रंगों और गुलालों से होली खेली जाती है वहीं, हमारे देश में एक ऐसा शहर भी है जहां होली का गुबार राख से चढ़ता है और जलते मुर्दों पर होली का जश्न मनाया जाता है.

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Gaveshna Sharma
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यहां जलते मुर्दों पर खेली जाती है होली, उड़ता है राख का गुबार

यहां जलते मुर्दों पर खेली जाती है होली, उड़ता है राख का गुबार( Photo Credit : Social Media)

होली रंग-राग, आनंद-उमंग और प्रेम-हर्षोल्लास का उत्सव है. देश के अलग-अलग हिस्सों में होली अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है. जहां एक तरफ पूरी दुनिया में रंगों और गुलालों से होली (Holi 2022) खेली जाती है वहीं, हमारे देश में एक ऐसा शहर भी है जहां होली का गुबार राख से चढ़ता है और जलते मुर्दों पर होली का जश्न मनाया जाता है. मोक्ष की नगरी काशी की होली अन्य जगहों से अलग अद्भुत, अकल्पनीय व बेमिसाल है. काशी में परंपराओं की होली के क्रम में मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्‍म की होली खेलने की परंपरा का अपना महत्‍व है. 

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वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्त महाश्मशान की राख से तैयार भस्म से होली खेलते हैं. होली से पहले बनारस में मंगलवार को मणिकर्णिका घाट पर मसान की होली खेली गई. मसान की यह होली बनारस में काफी चर्चित है. मणिकर्णिका घाट पर श्मशान नाथ बाबा के श्रृंगार और भोग से इस पर्व की शुरुआत होती है. यहां खेली जाने वाली होली इसलिए भी खास होती है क्योंकि यह होली भगवान शिव को अतिप्रिय है. ऐसा माना जाता है कि यहां साल के 365 दिन मसान से उड़ने वाली धूल लोगों का अभिषेक करती रहती है. 

इसके अलावा, हरिश्चन्द्र घाट पर भी मसान की होली मनाई जाती है लेकिन मणिकर्णिका घाट की इस होली का खास महत्व होता है. इतिहास में विश्वनाथ से भी पुरानी जगह मणिकर्णिका घाट है. बता दें कि मणिकर्णिका घाट में हजारों सालों से चिताएं जलती रही हैं. मसान की इस होली में जिन रंगों का इस्तेमाल होता है, उसमें यज्ञों-हवन कुंडों या अघोरियों की धूनी और चिताओं की राख का इस्तेमाल किया जाता है. काशी की होली में राग-विराग दोनों है. 

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, काशी के मणिकर्णिका घाट पर शिव ने मोक्ष प्रदान करने की प्रतिज्ञा ली थी. काशी दुनिया की एक मात्र ऐसी नगरी है जहां मनुष्य की मृत्यु को मंगल माना जाता है. मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन पार्वती का गौना करने के बाद देवगण और भक्तों के साथ बाबा होली खेलते हैं. लेकिन भूत-प्रेत,पिशाच आदि जीव-जंतु उनके साथ नहीं खेल पाते. इसलिए अगले दिन बाबा मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान करने आते हैं और अपने गणों के साथ चिता की भस्म से होली खेलते हैं.  

काशी में महादेव ने ना सिर्फ अपने पूरे कुनबे के साथ वास किया बल्कि हर उत्सवों में यहां के लोगों के साथ महादेव ने बराबर की हिस्सेदारी की. किसी भी उत्सव में शिव अपने गणों को नहीं भूलते. मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ तारक का मंत्र देकर सबको तारते हैं. माना जाता है कि मसान की होली में शामिल होना किसी सौभाग्य से कम नहीं है. डमरुओं की गूंज और हर-हर महादेव के जयकारे व पान और ठंडाई के साथ एक-दूसरे को मणिकर्णिका घाट की भस्म लगाते हैं. मसान की होली में इस साल बाकी सालों की तुलना में कम अघोरी और नागा बाबा शामिल हुए. 

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