Guru Purnima 2022 Guru is never a Shikshak: व्यक्ति के जीवन में अहम भूमिका रखते हुए भी क्यों गुरु को नहीं माना जाता है शिक्षक, जानें क्या है दोनों में अंतर

Guru Purnima 2022 Guru is never a Shikshak: माता और पिता के अलावा, गुरु बच्चे के पालन-पोषण और जीवन को आकार देने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. गुरु केवल देहधारी शरीर न होते हुए वे एक गुरुतत्त्व से जुडे़ होते है.

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Gaveshna Sharma
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Guru Purnima 2022 Guru is never a Shikshak

क्यों गुरु को नहीं माना जाता है शिक्षक, जानें क्या है दोनों में अंतर ( Photo Credit : News Nation)

Guru Purnima 2022 Guru is never a Shikshak: गुरु पूर्णिमा इस बार 13 जुलाई को है. हममें से प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में गुरु की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है. कह सकते हैं कि माता और पिता के अलावा, गुरु बच्चे के पालन-पोषण और जीवन को आकार देने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. गुरु केवल देहधारी शरीर न होते हुए वे एक गुरुतत्त्व से जुडे़ होते है. इस कारण किसी भी खरे गुरु द्वारा हमें देखने से ही हमारी साधना के संदर्भ में उन्हें पता चल जाता है. यदि हमारी साधना उचित ढंग से जारी हो, तो खरे संत कुछ बोलते नहीं है और यदि हमे अनुभूति हो कि अपने गुरु ही संतों के मुख से बोल रहे हैं, तो उस संत द्वारा बताई साधना अवश्य करनी चाहिए. शिक्षक, प्रवचनकार, भगत, संत तथा गुरु में भी अंतर होते हैं, यह अंतर हम निम्न प्रकार से समझ कर लेते हैं.

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शिक्षक और गुरु
शिक्षक मर्यादित समय और केवल शब्दों के माध्यम से सिखाते हैं लेकिन गुरु 24 घंटे, शब्द और शब्दों से परे ऐसे दोनों माध्यमों से शिष्य का हमेशा मार्गदर्शन करते रहते हैं. गुरु किसी भी संकट से शिष्य को तारते हैं लेकिन शिक्षक का विद्यार्थी के व्यक्तिगत जीवन से संबंध नहीं रहता है. थोडे में कहा जाए तो गुरु शिक्षक के संपूर्ण जीवन को ही बदल देते हैं. शिक्षक का और विद्यार्थी का संबंध कुछ ही घंटे और किसी विषय को सिखाने तक मर्यादित रहता है.

प्रवचनकार एवं गुरु 
कीर्तनकार और प्रवचनकार तात्विक जानकारी बताते हैं, पर सच्चे गुरु प्रायोगिक स्तर पर कृति करवा कर शिष्य की प्रगति करवाते हैं.

भगत एवं गुरु
भगत सांसारिक अड़चनें दूर करते हैं ,तो गुरु का सांसारिक अड़चनों से संबंध नहीं होता .उनका संबंध केवल शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति से होता है.

संत एवं गुरु
संत सकाम और निष्काम की प्राप्ति के लिए थोड़ा बहुत मार्गदर्शन करते हैं. कुछ संत लोगों की व्यावहारिक कठिनाइयां दूर करने के लिए बुरी शक्तियों के कष्टों से होने वाले दुख को दूर करते हैं. ऐसे संतों का कार्य यही होता है. जब कोई संत साधक को शिष्य के रूप में स्वीकार करते हैं, तो वे उसके लिए गुरु बन जाते है.  गुरु केवल निष्काम प्राप्ति के लिए पूर्ण रूप से मार्गदर्शन करते हैं. जब कोई संत गुरु होकर कार्य करते हैं तो उनके पास आने वालों की 'सकाम अड़चनों को दूर करने के लिए मार्गदर्शन मिले यह इच्छा धीरे-धीरे कम हो जाती है और अंत में समाप्त हो जाती है, परंतु जब वह किसी को शिष्य स्वीकार करते हैं तब उसका सभी प्रकार से बहुत ध्यान रखते हैं. प्रत्येक गुरु संत होते हैं परंतु प्रत्येक संत गुरु नहीं होते, फिर भी, संत के अधिकांश लक्षण  गुरु को लागू होते हैं.

गुरु कृपा होने के लिए गुरु पर पूर्ण श्रद्धा होना आवश्यक है. यदि किसी में लगन व श्रद्धा हो, तो उसे गुरु की कृपा अपने आप मिलती है. गुरु को उसके लिए कुछ करना नहीं पड़ता. केवल संपूर्ण श्रद्धा होना आवश्यक है. गुरु ही उसे उसके लिए पात्र बनाते हैं.

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