Gangaur Teej 2022: गणगौर व्रत के प्रभाव से टल जाती है पति की मृत्यु... जानें संपूर्ण पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

गणगौर का पर्व चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर चैत्र शुक्ल की तृतीया को गणगौर तीज पर व्रत पूजन के साथ समापन होता है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं गणगौर तीज का महत्व, पूजा सामग्री, विधि, शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी अनूठी कथा.

गणगौर का पर्व चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर चैत्र शुक्ल की तृतीया को गणगौर तीज पर व्रत पूजन के साथ समापन होता है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं गणगौर तीज का महत्व, पूजा सामग्री, विधि, शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी अनूठी कथा.

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Gaveshna Sharma
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आज गणगौर पर जानें सम्पूर्ण पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं अनूठी कथा

आज गणगौर पर जानें सम्पूर्ण पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं अनूठी कथा ( Photo Credit : Social Media)

Gangaur Teej 2022: हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज मनाई जाती हैं. इस बार गणगौर तीज का व्रत 4 अप्रैल 2022  दिन सोमवार यानि आज मनाया जाएगा. हिंदू धर्म में गणगौर पूजा का विशेष महत्व माना गया है. इस पर्व में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विधि विधान से की जाती है. यहां  गण का अर्थ भगवान शिव एवं गौर का अर्थ माता पार्वती से है. खासतौर पर गणगौर तीज का व्रत मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है.

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गणगौर का पर्व चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर चैत्र शुक्ल की तृतीया को गणगौर तीज पर व्रत पूजन के साथ समापन होता है. इस तरह यह पर्व पूरे 16 दिनों तक चलता है. यह दिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है. विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु एवं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं, जबकि विवाह योग्य कन्याएं मनपसंद वर या जीवनसाथी की कामना से गणगौर तीज व्रत रखती हैं. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं गणगौर तीज का महत्व, पूजा सामग्री, विधि, शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी अनूठी कथा. 

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गणगौर तीज 2022 तिथि
तृतीया तिथि आरंभ: 03 अप्रैल, रविवार दोपहर 12:38 बजे से 
तृतीया तिथि समाप्त : 04 अप्रैल, सोमवार दोपहर 01:54 बजे पर 
उदयातिथि के आधार पर गणगौर तीज व्रत 04 अप्रैल को रखा जाएगा.

गणगौर तीज 2022 पूजा मुहूर्त
शुभ मुहूर्त आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार, दोपहर 11:59 बजे से 
शुभ मुहूर्त समाप्त: 04 अप्रैल, सोमवार,दोपहर 12:49 बजे पर

गणगौर तीज पर बन रहे हैं शुभ योग 
प्रीति योग आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार  प्रातः  07:43 बजे से  
प्रीति योग समाप्त:05 अप्रैल, मंगलवार, प्रातः  07:59 बजे तक 
रवि योग आरंभ:  04 अप्रैल, सोमवार  दोपहर 02:29 बजे से  
रवि योग समाप्त: 05 अप्रैल, मंगलवार प्रातः  06:07 बजे पर 

गणगौर तीज का महत्व 
गणगौर तीज कुंवारी और विवाहित महिलाएं अपने सौभाग्य और अच्छे वर की कामना करने के लिए करती हैं. इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की आराधना की जाती है. 17 दिन  चलने वाले इस पर्व का समापन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर होता है. कुंवारी, विवाहित और नवविवाहित महिलाएं इस दिन नदी, तालाब या शुद्ध स्वच्छ शीतल सरोवर पर जाकर गीत गाती हैं और गणगौर को विसर्जित करती हैं. यह व्रत विवाहित महिलाएं पति से सात जन्मों का साथ, स्नेह, सम्मान और सौभाग्य पाने के लिए करती हैं. 

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा यानि मां पार्वती होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद इसर जी यानि भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं. इसलिए यह त्योहार होली की प्रतिपदा से आरंभ होता है. इस दिन से सुहागिन स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के शिव जी यानि गण एवं माता पार्वती यानि गौर बनाकर उनका प्रतिदिन पूजन करती हैं. इसके बाद चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर यानि शिव पार्वती की विदाई की जाती है. जिसे गणगौर तीज कहा जाता है. 

गणगौर तीज व्रत की पूजा सामग्री
गणगौर तीज व्रत के लिए नीचे दी गई पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है.
- चौकी, तांबे का कलश, काली मिट्टी, श्रृंगार का सामान, होली की राख 
- गोबर या मिट्टी के कंडे, गमले, मिट्टी का दीपक, कुमकुम, हल्दी
- चावल, बिंदी, मेंहदी, गुलाल और अबीर, काजल, घी 
- फूल, आम के पत्ते, जल से भरा हुआ कलश, नारियल, सुपारी 
- गणगौर के वस्त्र, गेंहू और बांस की टोकरी, चुनरी, कौड़ी 
- सिक्के, पूड़ी, घेवर, हलवा

गणगौर व्रत पूजा विधि
- किसी पवित्र तीर्थ स्थल या पास के सरोवर पर जाएं और वहां गौरीजी को स्नान करवायें.
- गणगौर तीज पर व्रत करें और विधि विधान से गणगौर की पूजा करें, घी की दीपक प्रज्वलित करें.
- हल्दी एवं कुमकुम से मिट्टी के बने हुए गण गौर का तिलक करें.
- माता गौरी को सिंदूर,अक्षत पुष्प अर्पित करके वहीं थोड़ा सा सिंदूर अपने माथे पर लगाएं.
- एक कागज लेकर उसके ऊपर 16 मेहंदी, 16 कुमकुम और 16 काजल की बिंदी लगाएं और माता को अर्पित कर दें.
- इसके बाद मां गौरी को भोग लगाएं.
- भोग लगाने के बाद गणगौर व्रत कथा सुनें या पढ़ें.
- इसके बाद गौरी-शिव को नदी या तालाब में विसर्जित करें और व्रत का पारण करें.

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