Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि में जानिए जौ विसर्जन की सही तिथि, मंत्र और तरीका

Chaitra Navratri 2024: जौ विसर्जन हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है. यह नवरात्रि के अंत का प्रतीक है. माना जाता है कि जौ विसर्जित करने से देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.

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Inna Khosla
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Chaitra Navratri 2024: जौ का विसर्जन ( Photo Credit : Social Media)

Chaitra Navratri 2024: जौ का विसर्जन एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है जो नवरात्रि के अंत में किया जाता है. इसे विशेष महत्व दिया जाता है क्योंकि इसमें देवी दुर्गा को विदाई दी जाती है और उनका प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है.  जौ विसर्जन से माता दुर्गा को प्रसन्न करने का विश्वास किया जाता है. इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. ये अनुष्ठान सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाने वाला माना जाता है. अनुष्ठान पर्यावरण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है. जौ विसर्जन नवरात्रि के दौरान किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है. यह नवरात्रि के नौवें दिन, यानी नवमी के दिन या दशमी को किया जाता है. इस अनुष्ठान में, जौ के बीजों को पानी में बोया जाता है और फिर उन्हें किसी नदी, तालाब या अन्य जल स्रोत में विसर्जित कर दिया जाता है. 

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जौ विसर्जन के समय इस मंत्र का जाप करें

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ (108 बार)

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभू‍तेषु शक्तिरूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ 

जौ का विसर्जन करने का सही तरीका

पूजा की शुरुआत में देवी दुर्गा को प्रणाम किया जाता है. उसके बाद, जौ के पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें पूजा के लिए सजाया जाता है. मंत्रों का जाप किया जाता है और देवी को अर्पित किया जाता है. विसर्जन के समय, जौ के पिंड को जल में नमक और हल्दी मिलाकर बहाया जाता है. इसके साथ ही मंत्रों का जाप और आरती किया जाता है. देवी के आशीर्वाद के लिए प्रार्थना की जाती है और उन्हें विदाई दी जाती है. विसर्जन का अंतिम उद्यान क्षेत्र में किया जाता है. इस पूजा का अंतिम उद्यान क्षेत्र में विसर्जन किया जाता है और देवी की आवाज का समापन होता है. विसर्जन की सही पूजा विधि में मंत्रों का जाप, देवी की पूजा, और भक्ति के साथ-साथ आदिवासी संगीत और नृत्य भी शामिल होते हैं. इस पूजा के माध्यम से भक्ति और आस्था को साझा किया जाता है, और लोग देवी की कृपा को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं. 

जौ का विसर्जन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है. पूजा की शुरुआत में देवी दुर्गा को प्रणाम किया जाता है और उनका आवाहन किया जाता है. इसके बाद, जौ के पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें पूजा के लिए सजाया जाता है. मंत्रों का जाप किया जाता है और देवी को अर्पित किया जाता है. यह पूजा विधि कुछ धार्मिक और संस्कृति के अनुसार लोग करते हैं. विसर्जन के समय, जौ के पिंड को जल में नमक और हल्दी मिलाकर बहाया जाता है. इसके साथ ही मंत्रों का जाप और आरती किया जाता है. देवी के आशीर्वाद के लिए प्रार्थना की जाती है और उन्हें विदाई दी जाती है. विसर्जन की सही पूजा विधि में मंत्रों का जाप, देवी की पूजा, और भक्ति के साथ-साथ संगीत और नृत्य भी शामिल होते हैं. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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Source : News Nation Bureau

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