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Akshaya Tritiya 2022, Shri Baanke Bihari Charan Darshan Rahasya: इस कारण से होते हैं साल में मात्र एक बार श्री बांकेबिहारी के चरण दर्शन, सोने की गिन्नियों ने खोला रहस्य

अक्षय तृतीया के दिन ही वृन्दावन के स्वामी श्री बांकें बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं और उनका सर्वांग शृंगार होता है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों सिर्फ साल में एक बार ही होते हैं बांकें बिहारी के चरणों के दर्शन.

Updated on: 28 Apr 2022, 01:30 PM

नई दिल्ली :

Akshaya Tritiya 2022, Shri Baanke Bihari Charan Darshan Rahasya: अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्‍ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाई जाती है. इस बार यह त्योहार 3 मई, मंगलवार के दिन पड़ रहा है. माना जाता है कि इस दिन कोई भी शुभ कार्य करने के लिए पंचागं देखने की जरूरत नहीं है. अक्षय तृतीया को जहां एक ओर शुभ मुहूर्त और शुभ खरीदारी से जोड़ कर देखा जाता है वहीं इस पर्व का एक तार वृन्दावन से भी जुड़ा हुआ है. अक्षय तृतीया के दिन ही वृन्दावन के स्वामी श्री बांकें बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. माना जाता है कि श्री बांकें बिहारी के चरणों के दर्शन से व्यक्ति की सात पुश्तियां तक कष्टों और पापों से तर जाती हैं और जीवन में सिर्फ खुशहाली का ही वास होता है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों सिर्फ साल में एक बार ही होते हैं श्री बांकें बिहारी के चरणों के दर्शन.

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श्री बांकें बिहारी के चरण दर्शन का रहस्य 
यह कथा भक्तिकाल की है जब स्वामी हरिदास भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त के रूप में जाने जाते थे. स्वामी हरिदास जी के पास धन का अभाव था वे अत्यंत ही दरिद्र थे लेकिन प्रभु की भक्ति में कभी कोई कसार नहीं छोड़ते थे. वे हमेशा ही उनसे लाढ़ लड़ाते रहते थे और ऐसा करते समय वो अपना सुध-बुध खो बैठते थे. ऐसे में जब एक बार श्रीबांके बिहारी जी का वृन्दावन धाम में प्रागट्य हुआ तो हरिदास जी के भक्तिभाव को दखते हुए उन्हें ही श्री बांके बिहारी की सेवा का कार्यभार सौंपा गया.  

स्वामी हरिदास जी खुद भी अपना गुजारा जैसे तैसे करते थे ऐसे में ठाकुरजी की सेवा की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर आ गई. प्रचलित कथाओं के अनुसार, श्री बांकें बिहारी अंतरयामी हैं उनकी परिस्थिति से अवगत थे इसलिए उन्होंने हरिदास जी के उनके प्रति प्रेम भाव को समझते हुए एक चमत्कार दिखाया. जिसके अनुसार, जब भी स्वामी जी भोर में उठकर प्रभु के चरणों में नमन करते तो उन्हें ठाकुरजी के चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा मिलती.

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ऐसा कई दिनों तक चलता रहा. स्वामीजी भी समझ गये की ये प्रभु की कृपा और उनकी अपार लीला ही है. लेकिन उन्हें साथ ही ये भी डर सताने लगा कि अगर किसी को भी प्रभु इस चमत्कार का पता चला तो कहीं प्रभु की मूर्ती चोरी न हो जाए इसलिए उन्होंने प्रभु केचार्नों को वस्त्र से ढकना शुरू कर दिया. बस तभी से ये परंपरा चली आ रही है कि केवल साल में अक्षय तृतीया के दिन ही भक्त श्री बांकें बिहारी के दर्शन कर सकते हैं. 

माना जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से अक्षय तृतीया के दिन प्रभु के चरणों के दर्शन करता है उसके घर में धन का कभी भी अभाव नहीं होता और धन से जुड़ी सारी विपदाएं दूर हो जाती हैं.