Chandraprabhu Bhagwan Chalisa: चंद्रप्रभु भगवान की पढ़ेंगे ये चालीसा, कष्टों का होगा अंत और जीवन में मिलेगी सफलता

चंद्रप्रभु भगवान (chandraprabhu bhagwan) जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर हैं. कहा जाता है कि श्वेत वर्ण चंद्रप्रभु जी का चालीसा (Chandraprabhu Bhagwan Chalisa) भक्तों को सभी सांसारिक बंधनों से मुक्ति दिलाता है.

चंद्रप्रभु भगवान (chandraprabhu bhagwan) जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर हैं. कहा जाता है कि श्वेत वर्ण चंद्रप्रभु जी का चालीसा (Chandraprabhu Bhagwan Chalisa) भक्तों को सभी सांसारिक बंधनों से मुक्ति दिलाता है.

author-image
Megha Jain
New Update
Chandraprabhu Bhagwan Chalisa

Chandraprabhu Bhagwan Chalisa ( Photo Credit : social media )

चंद्रप्रभु भगवान (chandraprabhu bhagvan) जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर हैं. राजस्थान के अलवर जिले के तिजारा में चंद्रप्रभु जी का प्रसिद्ध मंदिर है. जहां अनुयायियों द्वारा दर्शन के बाद चंद्रप्रभु का चालीसा किया जाता है. कहा जाता है कि श्वेत वर्ण चंद्रप्रभु जी का चालीसा भक्तों को सभी सांसारिक बंधनों से मुक्ति दिलाता है. चंद्रप्रभु जी का ये चालीसा पढ़ने से पाठकों को जीवन में सफलता और समृद्धि मिलती है. इसके साथ ही उनके सभी कष्टों (bhagvan chandraprabhu chalisa) का भी अंत होता है.  

Advertisment

यह भी पढ़े : Panchak April 2022 Upay: इस बार के पंचक हैं बेहद शुभ, इन उपायों को करने से पुण्य मिलेगा खूब

चंद्रप्रभु भगवान का चालीसा (chalisa chandraprabhu bhagwan ji)
 
वीतराग सर्वज्ञ जिन, जिन वाणी को ध्याय |
लिखने का साहस करुं, चालीसा सिर नाय |1|
देहरे के श्रीचन्द्र को, पूजौं मन वच काय |
ऋद्धि सिद्धि मंगल करें, विघ्न दूर हो जाय |2|
जय श्रीचन्द्र दया के सागर, देहरे वाले ज्ञान उजागर |3|
शांति छवि मूरति अति प्यारी, भेष दिगम्बर धारा भारी |4|
नासा पर है दृष्टि तुम्हारी, मोहनी मूरति कितनी प्यारी |5|
देवों के तुम देव कहावो, कष्ट भक्त के दूर हटावो |6|
समन्तभद्र मुनिवर ने ध्याया, पिंडी फटी दर्श तुम पाया |7|
तुम जग में सर्वज्ञ कहावो, अष्टम तीर्थंकर कहलावो |8|
महासेन के राजदुलारे, मात सुलक्षणा के हो प्यारे |9|
चन्द्रपुरी नगरी अति नामी, जन्म लिया चन्द्र-प्रभु स्वामी |10|
पौष वदी ग्यारस को जन्मे, नर नारी हरषे तब मन में |11|
काम क्रोध तृष्णा दुखकारी, त्याग सुखद मुनि दीक्षा धारी |12|
फाल्गुन वदी सप्तमी भाई, केवल ज्ञान हुआ सुखदाई |13|
फिर सम्मेद शिखर पर जाके, मोक्ष गये प्रभु आप वहां से|14|
लोभ मोह और छोड़ी माया, तुमने मान कषाय नसाया |15|
रागी नहीं, नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी |16|
पंचम काल महा दुखदाई, धर्म कर्म भूले सब भाई |17|
अलवर प्रान्त में नगर तिजारा, होय जहां पर दर्शन प्यारा|18|
उत्तर दिशि में देहरा माहीं, वहां आकर प्रभुता प्रगटाई |19|
सावन सुदि दशमि शुभ नामी, प्रकट भये त्रिभुवन के स्वामी20|
चिह्न चन्द्र का लख नर नारी, चंद्रप्रभु की मूरती मानी |21|
मूर्ति आपकी अति उजयाली, लगता हीरा भी है जाली |22|
अतिशय चन्द्र प्रभु का भारी, सुनकर आते यात्री भारी |23|
फाल्गुन सुदी सप्तमी प्यारी, जुड़ता है मेला यहां भारी |24|
कहलाने को तो शशि धर हो, तेज पुंज रवि से बढ़कर हो |25|
नाम तुम्हारा जग में सांचा, ध्यावत भागत भूत पिशाचा |26|
राक्षस भूत प्रेत सब भागें, तुम सुमिरत भय कभी न लागे|27|
कीर्ति तुम्हारी है अति भारी, गुण गाते नित नर और नारी|28|
जिस पर होती कृपा तुम्हारी, संकट झट कटता ही भारी |29|
जो भी जैसी आश लगाता, पूरी उसे तुरत कर पाता |30|
दुखिया दर पर जो आते हैं, संकट सब खो कर जाते हैं |31|
खुला सभी हित प्रभु द्वार है, चमत्कार को नमस्कार है |32|
अन्धा भी यदि ध्यान लगावे, उसके नेत्र शीघ्र खुल जावें |33|
बहरा भी सुनने लग जावे, पगले का पागलपन जावे |34|
अखंड ज्योति का घृत जो लगावे संकट उसका सब कट जावे |35|
चरणों की रज अति सुखकारी, दुख दरिद्र सब नाशनहारी |36|
चालीसा जो मन से ध्यावे, पुत्र पौत्र सब सम्पति पावे |37|
पार करो दुखियों की नैया, स्वामी तुम बिन नहीं खिवैया |38|
प्रभु मैं तुम से कुछ नहिं चाहूं दर्श तिहारा निश दिन पाऊँ39|
करुं वन्दना आपकी, श्रीचन्द्र प्रभु जिनराज |
जंगल में मंगल कियो, रखो ‘सुरेश’ की लाज |40|

chalisa sangrah chandraprabhu bhagvan chalisa chandraprabhu bhagvan jain chalisa chandraprabhu bhagwan ji chalisa shri chandraprabhu chalisa shri chandraprabhu bhagwan chalisa shri chandraprabhu bhagwan chalisa hindi chandra prabhu chalisa chandraprabhu b
      
Advertisment