शिंजो आबे के जाने से भारत-जापान संबंधों का मजबूत स्तंभ ढह गया
शिंजो आबे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर दोनों देशों के संबंधों को और घनिष्ठ बनाया. आबे भारत के विकास के लिए निजी तौर पर प्रतिबद्ध थे. भले ही वह बुलेट ट्रेन परियोजना हो या देश के अघोसंरचना के विकास से जुड़ी योजनाएं.
highlights
- 2007 में पीएम रहते पहली बार भारत आए शिंजो आबे, संसद को किया था संबोधित
- मोदी सरकार की मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया को गति देने में किया अहम योगदान
नई दिल्ली:
जापान के राजनीतिक फलक पर पूर्व प्रधानमंत्री ">शिंजो आबे (Shinzo Abe) के कद के बराबर फिलहाल कोई नेता नहीं है. उनकी असमय हत्या ने जापान (Japan) की राजनीति में एक ऐसा शून्य दिया है, जिसे भरना निकट समय में काफी मुश्किल होगा. लोगों के जेहन में 2015 में वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के साथ गंगा आरती और 2016 में जापान में पीएम मोदी के साथ उनकी बुलेट ट्रेन की सवारी से जुड़ी फोटो आज भी ताजा है. गंगा आरती के दौरान तो दीपों की रोशनी से उनका चेहरा चमक रहा था. ऐसा लगता है कि मोक्ष प्रदान करने वाली मां गंगा के साथ यह उनकी नियति ही थी. भारत के साथ आबे का रिश्ता केवल राजनीति तक सीमित नहीं रहा. वह अपने नाना के पीएम रहते भारत (India) आए थे और बचपन में ही खास रिश्ता बना गए थे.
जापानी पीएम बतौर चार बार भारत आए आबे
अगर भारत के संदर्भों में बात करें तो शिंजो आबे के चले जाने से भारत-जापान संबंधों का एक मजबूत स्तंभ ढह गया है. जापान के प्रधानमंत्री के रूप में चार बार भारत आने वाले आबे को यहां भरपूर प्यार मिला. शिंजो आबे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर दोनों देशों के संबंधों को और घनिष्ठ बनाया. आबे भारत के विकास के लिए निजी तौर पर प्रतिबद्ध थे. भले ही वह बुलेट ट्रेन परियोजना हो या देश के अघोसंरचना के विकास से जुड़ी योजनाएं, आबे ने भारत के साथ संबंधों को आय़ाम देने में कभी कोताही नहीं बरती. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भी शिंजो आबे के नेतृत्व में जापान-भारत संबंधों ने नई ऊचांईयों को छुआ.
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संसद में संबोधन और दो समुद्रों का मिलन
जापान के प्रधानमंत्री के रूप में 2007 में शिंजो आबे अपने पहले कार्यकाल में ही भारत का दौरा किया था. उस वक्त केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी. 22 अगस्त को भारतीय संसद में उनका संबोधन 'दो समुद्रों के मिलन' के रूप में जाना जाता है. इसी भाषण में आबे ने मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र की वकालत की थी. इसके कुछ दिनों बाद जापान ने पूर्वोत्तर भारत में निवेश शुरू किया. ऐसा करने वाला जापान पहला देश था. आबे समझ रहे थे कि चीन की विकराल चुनौती से निपटने के लिए उन्हें भारत से अच्छा साझेदार नहीं मिलेगा. 2014 में भारत और जापान के रिश्ते को 'स्पेशल' दर्जा दे दिया गया. निवेश से लेकर आर्थिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, विकास, सिविल न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी से लेकर डिफेंस में दोनों देश कंधे से कंधा मिलाकर चले.
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मेक इन इंडिया स्किल इंडिया को भी दी गति
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी पहल मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया को गति देने में आबे के योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता है. जापान इनसे जुड़ी परियोजनाओं में निवेश करने वाला बड़ा साझेदार रहा. मालाबार एक्सरसाइज के जरिये आबे ने भारतीय नौसेना के साथ जापान के संबंधों को न सिर्फ गहराई दी, बल्कि रणनीतिक स्तर पर भारत के पड़ोसी देशों को एक संदेश भी दिया. आबे के लिए भारत से संबंध हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता पर रहे. द्विपक्षीय सामरिक और वैश्विक साझेदारी को आबे ने पूरे मनोयोग से निभाया. 2006 में आई उनकी बेस्टसेलर किताब 'उत्सुकुशी कुनी-ए' में उन्होंने बेलौस अंदाज में लिखा था कि आने वाले दशकों में यदि इंडो-जापान रिश्ते अमेरिका-जापान या चीन-जापान से आगे निकल जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. शिंजो आबे की प्रधानमंत्री के रूप में भारत की आखिरी यात्रा 2017 में हुई, तब वह मोदी के गृह राज्य गुजरात गए थे जहां मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की नींव रखी गई.
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