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नेपाल में अब न्यायिक संकट, चीफ जस्टिस पर लगा सत्ता से सौदेबाजी का आरोप( Photo Credit : न्यूज नेशन)
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नेपाल में अब न्यायिक संकट, चीफ जस्टिस पर लगा सत्ता से सौदेबाजी का आरोप( Photo Credit : न्यूज नेशन)
नेपाल अभी अभी राजनीतिक संकट से उबरा ही था कि वहां न्यायिक संकट गहरा गया है. नेपाल के सर्वोच्च अदालत के प्रधान न्यायाधीश चोलेन्द्र शमशेर राणा पर यह संगीन आरोप लगा है कि उन्होंने संसद की बहाली के बदले में सत्तारूढ दलों से राजनीतिक सौदेबाज़ी की है. अपने कार्यकाल के शुरूआत से ही विवादित फैसलों में घिरे प्रधान न्यायाधीश राणा पर ओली सरकार के विरोध में संसद की बहाली का फैसला देने के बदले सरकार में प्रधानमंत्री देउवा की सरकार में अपने निकटवर्ती पारिवारिक सदस्य के लिए मंत्री का पद मांगने का आरोप लगा है. इतना ही राणा पर मंत्री पद के अलावा राजदूतों की नियुक्ति में हिस्सेदारी सहित कई संवैधानिक नियुक्तियों में भी हिस्सेदारी मांगे जाने का आरोप लगा है.
यह मामला तब प्रकाश में आया जब सत्ता संभालने के करीब तीन महीने बाद देउवा ने मंत्रिमंडल विस्तार में एक गैर सांसद अंजान चेहरे को मलाईदार मंत्रालय सौंपा था. गठबंधन दलों में लम्बे विवाद के बाद हुए कैबिनेट विस्तार के दौरान शपथ लेने वाले नए मंत्रियों की सूची में एक गैर सांसद एवं गैर राजनीतिक व्यक्ति का भी नाम था. गजेन्द्र हमाल नाम के व्यक्ति का नाम देख कर सभी चौंक पडे़ थे. बाद में पता चला कि देउवा ने उद्योग, वाणिज्य तथा आपूर्ति मंत्रालय में जिस गजेन्द्र हमाल की नियुक्ति की है वो कोई और नहीं बल्कि प्रधान न्यायाधीश चोलेन्द्र शमशेर राणा के निकटवर्ती रिश्तेदार हैं. लगातार विरोध और मीडिया में बदनामी के बाद हमाल को शपथग्रहण के तीसरे दिन ही अपने पद से इस्तीफा देना पड गया था. तब जाकर सरकार और प्रधान न्यायाधीश के बीच इस सांठगांठ का पर्दाफाश हुआ था. अभी यह मामला दबा भी नहीं था कि प्रधान न्यायाधीश चोलेन्द्र राणा के तरफ से सरकार द्वारा किए जाने वाले राजदूत नियुक्ति में अपने दो निकटवर्ती लोगों को नियुक्त करने के लिए सत्तारूढ गठबन्धन पर दबाब बनाया.
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किसी भी न्यायाधीश के लिए सत्ता से सौदेबाज़ी करना अपने आप में अस्वाभाविक और अकल्पनीय था. चोलेन्द्र शमशेर की राजनीतिक सांठगांठ और सौदेबाज़ी की कवायद का अन्त यहीं नहीं हुआ. देउवा सरकार के तरफ से एक निर्णय किया गया कि ओली सरकार के द्वारा अध्यादेश लाकर जिन संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां की गई थी वो सभी नियुक्तियों को रद्द किया जाता है. सरकार के इस फैसले के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा लेकिन चीफ जस्टिस राणा ने मामले को हमेशा अपने अध्यक्षता में रखा और लगातार उस मामले की सुनवाई टालते जा रहे हैं.
इसके पीछे का कारण यह है कि ओली की सरकार में भी उनका यह राजनीतिक सौदेबाज़ी लगातार चल रहा थी . ओली सरकार ने जिन 32 पदों पर अध्यादेश लाकर संवैधानिक पदों पर नियुक्ति की थी उनमें 9 पदों पर चोलेन्द्र राणा की सिफारिश से नियुक्तियां की गई थी. यही कारण था कि संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के लिए बनी संवैधानिक परिषद का जब तत्कालीन विपक्षी नेता शेर बहादुर देउवा ने बहिष्कार किया तो विपक्षी नेता के बिना भी संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के लिए अध्यादेश लाया गया जिसका प्रधान न्यायाधीश चोलेन्द्र राणा ने समर्थन किया था. प्रधान न्यायाधीश संवैधानिक परिषद के पदेन सदस्य होते हैं.
यानि कि प्रधान न्यायाधीश की राजनीतिक सौदेबाज़ी ओली सरकार के समय से ही जारी होने की बात उनकी क्रियाकलापों और फैसलों से पुष्टि हो गई है. नेपाली मीडिया में तो चर्चा यह भी है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के द्वारा किए गए संसद विघटन के पक्ष में फैसला देने के बदले उन्होंने चुनावी सरकार का नेतृत्व करने के लिए अन्तरिम सरकार का प्रधानमंत्री पद मांगा था लेकिन ओली के मना किए जाने के बाद फैसला सरकार के विरोध में आ गया था.
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न्यायाधीशों का विरोध
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर फैसला के बदले सत्ता से सौदेबाज़ी किए जाने की खबर के बाद सर्वोच्च अदालत के बाकि सभी न्यायाधीशों ने एक साथ चोलेन्द्र शमशेर राणा का सामूहिक विरोध कर दिया है. इस विवाद के निबटारे के लिए चीफ जस्टिस चोलेन्द्र ने बीते सोमवार को "फुल कोर्ट" बुलाया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मौजूद सभी 14 जजों ने इसका बहिष्कार कर दिया था. अवकाश पर रहे 5 अन्य जजों ने भी बहिष्कार के निर्णय को अपना समर्थन दिया है. पिछले तीन दिनों से सुप्रीम कोर्ट में एक भी मुकदमें की सुनवाई नहीं हो पाई है. सुप्रीम कोर्ट के इन जजों का कहना है कि जब तक चीफ जस्टिस राणा पूरे न्यायिक प्रक्रिया से अलग नहीं हो जाते तब तक किसी भी मुकदमें की सुनवाई नहीं होगी.
बार एसोसिएशन का बहिष्कार
प्रधान न्यायाधीश चोलेन्द्र शमशेर राणा पर लगे संगीन आरोप के बाद नेपाल बार एसोसिएसन की बैठक से यह फैसला लिया गया है कि जब तक चीफ जस्टिस अपना पद नहीं छोड देते तब तक बार एशोसियेशन से जुडा कोई भी वकील किसी भी बहस में हिस्सा नहीं लेगा. बार एसोसिएसन ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि चीफ जस्टिस की इस पॉलिटिकल बार्गेनिंग की वजह से पूरी न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खडा हो गया है. वक्तव्य में कहा गया है कि किसी भी न्यायाधीश द्वारा फैसला के बदले राजनीतिक लेनदेन की बात करना न्याय व्यवस्था पर एक कलंक है और यह लोकतंत्र के लिए किसी भी मायने में हितकर नहीं है. आम जनता के मन में न्याय व्यवस्था पर भरोसा बना रहे इसके लिए जरूरी है जल्द से जल्द चीफ जस्टिस इस न्याय व्यवस्था से अपने आप को अलग कर ले.
चार पूर्व प्रधान न्यायाधीश का वक्तव्य
नेपाल की न्यायिक व्यवस्था ही संकट में आने के बाद सोमवार देर रात को देश के चार पूर्व प्रधान न्यायधीशों ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए इस पूरे प्रकरण से नेपाल में न्यायिक संकट आने की बात कही है. प्रधान न्यायाधीश पर ही सांठ-गांठ के आरोप लगने के बाद उन्हें तत्काल अपने पद से इस्तीफा देने की मांग भी की गई है. बयां देने वाले चारों पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने कहा है कि यदि प्रधान न्यायाधीश चोलेन्द्र शमशेर राणा अपना पद नहीं छोडते हैं तो संसद को उन पर महाभियोग लगा कर हटाना चाहिए.
HIGHLIGHTS
Source : Punit K Pushkar