जब किसी इंसान की मृत्यु होती है, तो हिंदू धर्म में उसे अंतिम विदाई देने के लिए शव को अर्थी पर रखा जाता है और परिजन व लोग उसे श्मशान तक ले जाते हैं. इस दौरान रास्ते में एक वाक्य लगातार बोला जाता है “राम नाम सत्य है”.
सदियों से चली आ रही यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थ भी छिपे हैं. लेकिन सवाल यह है कि आखिर इस वाक्य का प्रयोग क्यों किया जाता है? क्यों बार-बार कहा जाता है कि “राम नाम ही सत्य है”?
1. मृत्यु की सच्चाई का स्मरण
“राम नाम सत्य है” यह वाक्य इस बात का प्रतीक है कि जीवन क्षणभंगुर है, और मृत्यु ही एकमात्र अटल सत्य है. इसे कहने का उद्देश्य न केवल मृतक की आत्मा को विदाई देना होता है, बल्कि जीवित लोगों को भी यह याद दिलाना होता है कि इस संसार में जो भी है, वह नश्वर है. केवल ईश्वर का नाम ही सत्य है.
2. राम नाम का जाप आत्मा को शांति देता है
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, राम ईश्वर का नाम है और ईश्वर का नाम लेने से आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. जब अर्थी के साथ यह वाक्य बोला जाता है, तो यह मृतक आत्मा को ईश्वर की ओर ले जाने में सहायक माना जाता है.
3. समाज को जीवन की नश्वरता का बोध
अंतिम यात्रा के दौरान यह बार-बार दोहराया जाता है ताकि समाज को यह स्मरण रहे कि मृत्यु एक दिन सबको आनी है. यह वाक्य मानवीय अहंकार, लोभ और माया से मुक्ति का संदेश भी देता है.
4. भक्ति और विश्वास की परंपरा
भक्तिकाल के संतों जैसे तुलसीदास और कबीर ने भी राम नाम की महिमा का वर्णन किया है. कबीर कहते थे, “सांस-सांस में राम बसा है, राम बिना सब शून्य.” ऐसे में मृत्यु के समय राम नाम का जाप एक श्रद्धा का प्रतीक बन जाता है.
“राम नाम सत्य है” केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच की उस कड़ी का नाम है, जो मनुष्य को सच्चाई से जोड़ता है. यह वाक्य हमें याद दिलाता है कि धन, पद, रिश्ते सब यहीं रह जाते हैं, लेकिन जो साथ जाता है, वह है ईश्वर का नाम.
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