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आखिर कहां जाएं जंगल का यह प्राणी.. जब जंगल हो रहे कम

लगातार वेस्ट यूपी(west up) के जिलों जैसे मेरठ, बिजनौर, मुरादाबाद आदि में गुलदार(guldar) का खौफ बना रहता है. कई बार लोग कई-कई दिन तक अपने घरों में कैद होने को मजबूर हो जाते हैं .

Updated on: 21 Aug 2021, 11:38 AM

highlights

  • वेस्ट यूपी के किसी न किसी जनपद में बना रहता है गुलदार का खौफ
  • आखिर आबादी वाले क्षेत्रों में क्यों आते हैं तेंदुआ और गुलदार
  •  लगातार हो रहा जंगल का कटान. नहीं कोई सोचने वाला 

New delhi:

लगातार वेस्ट यूपी(west up) के जिलों जैसे मेरठ, बिजनौर, मुरादाबाद आदि में गुलदार(guldar) का खौफ बना रहता है. कई बार लोग कई-कई दिन तक अपने घरों में कैद होने को मजबूर हो जाते हैं . पर क्या आपको पता है कि जंगल के ये प्राणी आबादी में आते क्यों हैं. आबादी वाले क्षेत्र में जंगली जानवरों के घुस जाने की एक खास वजह है जिसे जानकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे. जी हां जब जंगल ही नहीं बचेंगे तो जंगली जानवरों को आबादी में आने को मजबूर होना पड़ रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2073 वर्ग किमी क्षेत्रफल पर फैली हस्तिनापुर सेंचुरी भी दिन-प्रतिदिन भू-माफिया की भेट चढ़ती जा रही है. जिसके चलते वन्य जीव आबादी की ओर रुक कर ही लेते हैं.

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रोजाना हो रहा कटान 
दरअसल, विकास के नाम पर रोजाना वनों का कटान हो रहा है. चंदन और सागौन के लाखों पेड़ काट दिए गए प्रतिदिन काटे जा रहे हैं. लेकिन उनकी एवज में 100 पेड़ भी लगाए जाते. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वेस्ट यूपी की आरा मशीनों पर रोजाना हजारों कुंतल लकड़ियों को हलाल कर दिया जाता है. पिछले कई माह में वन विभाग के अधिकारियों ने एक भी आरामशीन का निरिक्षण नहीं किया. जिसके कारण जंगलों में रहने वाले जानवरों को मैदानी इलाकों में आना पड़ रहा है. सेंचुरी का बिगड़ा भूगोल 
वर्ष 1986 में जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक मेरठ, मुज्जफरनगर, बिजनौर को छूती सेंचुरी में सिर्फ 220 वर्ग किमी क्षेत्र पर ही घना जंगल बचा है.


 जिसमें जनपद बिजनौर का सर्वाधिक क्षेत्रफल है.  इतना ही क्षेत्रफल सरकारी जमीनों का भी है. लगातार विकास की आड़ में जंगलों का दोहन हो रहा है. जिसके चलते वन्य जीवों को गांव और शहर की तरफ रुख करना पड़ रहा है. पिछलों दिनों मेरठ में तेंदुए ने कई दिनों तक शहर में लोगों को डराया था. हालाकि वन विभाग की टीम ने बाद में उसे पकड़ लिया था. यह कड़वी सच्चाई वन अधिकारी भी जानते हैं. लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है.