Shivsena की तरह किन दलों में बन चुके हैं ऐसे हालात? मान्यता को लेकर छिड़ा विवाद
चुनाव आयोग ने निर्णय लेते हुए शुक्रवार को कहा कि पार्टी का नाम शिवसेना और तीर का पार्टी चिन्ह एकनाथ गुट के पास रहने वाला है.
highlights
- उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच विवाद चल रहा था
- शिवसेना और पार्टी चिन्ह एकनाथ गुट के पास रहने वाला है
- सबसे पहले ऐसा मामला 1969 में सामने आया
नई दिल्ली:
महाराष्ट्र में शिवसेना के नाम और दल के सिंबल को लेकर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच बीते काफी समय से विवाद चल रहा था. इस पर चुनाव आयोग ने निर्णय लेते हुए शुक्रवार को कहा कि पार्टी का नाम शिवसेना और पार्टी चिन्ह एकनाथ गुट के पास रहने वाला है. पहले दिए नाम- बालासाहेबंची शिवसेना और दो तलवारों और ढालों के चिन्ह को वापस ले लिया गया है. गौरतलब है कि दोनों गुटों को पहले शिवसेना का नाम और पार्टी चिन्ह धनुष और तीर का उपयोग करने से रोक दिया गया था. उस दौरान उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट को मशाल (ज्वलंत मशाल) का प्रतीक और नाम शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे दिया गया. यह सिंबल अलग-अलग इसलिए आवंटित किए गए क्योंकि नवंबर 2022 में अंधेरी पूर्व उपचुनाव होने थे. इस कारण दोनों गुटों को तीर-धनुष के चिन्ह को उपयोग करने से रोक दिया गया था. इस तरह ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां पर राजनीतिक दलों में विभाजन हुआ. इसमें दोनों गुटों ने वास्तविक पार्टी के रूप में मान्यता की मांग की थी.
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कांग्रेस का बंटवारा
सबसे पहले ऐसा मामला 1969 में सामने आया. जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस विभाजित होकर दो दलों- कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आई) के रूप में सामने आई. इसके बाद कांग्रेस दूसरी बार भी विभाजन का शिकार हुई. यह साल था 1978. कांग्रेस दूसरी बार विभाजित हुई. इन पार्टियों के नाम कांग्रेस (इंदिरा) और कांग्रेस (उर्स) रखा गया.
अन्नाद्रमुक और जनता दल में दरार
1980 का दशक आते-आते तमिलनाडु में, अन्नाद्रमुक दो गुटों में बंट गया. एक की अगुवाई एमजी रामचंद्रन की पत्नी वीएन जानकी के द्वारा हुई. वहीं दूसरे का जयललिता ने किया. इसके बाद जनता दल में भी दरारें आईं. यह जद (यू) और जद (एस) में बंट गई थी.
सपा में भी हुआ विभाजन
2012 में उत्तराखंड में इस तरह की स्थिति सामने आई. उत्तराखंड क्रांति दल दो गुटों में बंट गए. 2017 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भी चुनाव से पहले विभाजित हो गई थी. शिवपाल यादव ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा नाम से पार्टी आरंभ की.
कंगना की भविष्यवाणी सही साबित हुई
इस दौरान कंगना के एक पुराने ट्वीट को रिट्वीट किया गया है. बीइंग ह्यूमर नाम के ट्विटर हैंडल ने लिखा, कंगना की भविष्यवाणी सही साबित हुई है. उन्हें ऐसे ही क्वीन नहीं कहा जाता है. इस पर जवाब देते हुए कंगना ने लिखा, भले ही ये मैंने लिखा, मगर यह भविष्यवाणी नहीं थी. यह मात्र कॉमन सेंस था. कंगना ने पुराने ट्वीट में कहा था, जो साधुओं की हत्या और स्त्री के अपमान करे,उसका पतन तय है. अपने इस ट्वीट को कंगना ने हैशटैग के साथ कई हस्तियों के नाम लिखे. गौतलब है कि महाराष्ट्र सरकार में उद्धव सरकार के दौरान अभिनेत्री कंगना के दफ्तर पर बीएमसी का बुल्डोजर चला था. उस समय नोटिस के कुछ दिनों बाद ही ये तोड़फोड़ शुरू कर दी गई थी. कंगना ने इस कार्रवाई को गैरकानूनी बताया था.
कंगना का आरोप था कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि उनकी हत्या करवाई गई. उनका कहना था कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली तत्कालीन महा विकास अघाड़ी सरकार ने इस मामले को दबाया है. उद्धव सरकार ने कंगना के इन बयानों पर कड़ी आपत्ति जताई. इसके बाद बीएमसी ने कंगना के मुंबई स्थित घर पर बुल्डोजर चला दिया.
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