यहां बुजुर्गों को अस्पतालों में अकेला छोड़कर जा रहे परिजन, लगातार बढ़ रही ऐसी घटनाएं

डॉ. सुरेश हारबड़े ने यहां तक बताया है कि जब हम उनके परिजनों से संपर्क करने की कोशिश करते हैं तो कई बार उनकी ओर से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है. कई मामलों में ऐसा देखा गया है.

डॉ. सुरेश हारबड़े ने यहां तक बताया है कि जब हम उनके परिजनों से संपर्क करने की कोशिश करते हैं तो कई बार उनकी ओर से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है. कई मामलों में ऐसा देखा गया है.

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Dalchand Kumar
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इलाज की कहकर यहां बुजुर्गों को अस्पतालों में ही छोड़कर जा रहे परिजन( Photo Credit : फाइल फोटो)

आज की इस दुनिया में अपना कोई नहीं है. जब इंसाफ बूढ़ा हो जाता है तो उस बुढ़ापे में अपने ही दर्द देने लगते हैं. आमतौर पर मां-बाप अपने बच्चों को बुढ़ापे का सहारा मानते हैं, मगर आज की स्थिति बिल्कुल ही अलग है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि उपचार के लिए बुजुर्ग व्यक्तियों को लाने के बाद परिजनों द्वारा उन्हें यहीं पर अकेला छोड़कर जाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. जिसके बारे में महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (जीएमसीएच) के अधिकारियों ने बताया है.

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अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में औरंगाबाद का जीएमसीएच सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थानों में से एक है और क्षेत्र के आठ जिलों के लोग यहां उपचार के लिए आते हैं. इस अधिकारी की मानें तो परिवार के बुजुर्ग लोगों को उनके परिजन अस्पताल में ही छोड़कर चले जाते हैं और ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं.

इस पर जीएमसीएच के अधीक्षक डॉ. सुरेश हारबड़े का कहना है कि कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन के शुरुआती दौर में यहां ऐसे बुजुर्गों की संख्या बढ़ गई, जिन्हें उनके परिजन अकेला छोड़ गए. उन्होंने बताया कि औरंगाबाद नगर निगम के साथ मिलकर अभियान चलाया गया और ऐसे कई बुजुर्गों को स्थानीय आश्रय गृहों में भेजा. हालांकि उनमें से कई वहां से भी चले गए.

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डॉ. सुरेश हारबड़े ने बताया कि परिवार द्वारा छोड़े गए बुजुर्ग अस्पताल परिसर, फुटपाथ तथा अस्पताल के इर्द-गिर्द ऐसे स्थानों पर रहने लगते हैं जहां उन्हें भोजन आसानी से मिल सके. अधिकारी ने बताया कि मरीजों के साथ कोई देखरेख करने वाला न भी हो तो भी उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाता है. उन्होंने कहा कि हमारे कर्मचारी और सामाजिक कार्यकर्ता ऐसे लोगों का ध्यान रखते हैं.

सुरेश हारबड़े ने यहां तक बताया है कि जब हम उनके परिजनों से संपर्क करने की कोशिश करते हैं तो कई बार उनकी ओर से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है. कई मामलों में ऐसा देखा गया है.

Source : Bhasha/News Nation Bureau

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