65 दिनों तक लाइफ सपोर्ट पर रहा बच्चा, पहली बार संक्रमित फेफड़ों का ऐसे किया इलाज
हैरानी वाली बात है कि बच्चा बिना फेफड़ों के ट्रांसप्लांट के ही ठीक हो गया है. ऐसा कहा जा रहा है कि यह भारत और एशिया का सबसे पहला मामला है.
highlights
- हैरानी वाली बात है कि वह बिना फेफड़ों के ट्रांसप्लांट के ही ठीक हो गया है
- यह भारत और एशिया का सबसे पहला मामला है
- डॉक्टरों के अनुसार उसे जल्द ही छुट्टी मिली जाएगी
नई दिल्ली:
कोरोना वायरस संक्रमण (Coronavirus) की वजह से ग्रस्त लोगों में कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं देखने को मिलती हैं. अधिकांश को फेफड़ों (Lung Disease) की समस्या सबसे अधिक होती है. ऐसा ही एक मामला लखनऊ के 12 वर्षीय लड़के शौर्य का सामने आया है. उसे भी कोरोना संक्रमण हुआ था. मगर उस समय यह पता नहीं चल पाया था. उसका इलाज वायरल निमोनिया के तौर पर किया गया. उसके फेफड़ों में गंभीर बीमारी हो गई थी, मगर अब वह पूरी तरह स्वस्थ्य है. वह 65 दिन लाइफ सपोर्ट सिस्टम (Life Support System) पर रहा. हैरानी वाली बात है कि वह बिना फेफड़ों के ट्रांसप्लांट के ही ठीक हो गया है. ऐसा कहा जा रहा है कि यह भारत और एशिया का सबसे पहला मामला है.
शौर्य को अगस्त में कोरोना से संक्रमित होने के बाद फेफड़ों की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा था. उसके फेफड़ों में इंफेक्शन हो गया था. लखनऊ में डॉक्टरों ने उसके माता पिता को उसके फेफड़ों को ट्रांसप्लांट करने का सुझाव दिया. इसी बीच उसके माता-पिता उसे इलाज के लिए हैदराबाद ले गए. उसे इलाज के लिए लखनऊ से एयरलिफ्ट कर हैदराबाद ले जाया गया. वहां डॉक्टरों ने उसका इलाज शुरू किया था. वहां उसे ईसीएमओ नामक लाइफ सपोर्ट दिया गया था. वह 65 दिन इस पर रहा.
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ईसीएमओ लाइफ सपोर्ट पर रहने के 65 दिन बाद शौर्य ठीक हो गया. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वह इस समय अस्पताल में फिजियोथेरेपी कर रहा है. डॉक्टरों के अनुसार उसे जल्द ही छुट्टी मिली जाएगी. बच्चे के ठीक होने पर उसकी मां रेणु श्रीवास्तव ने डॉक्टरों का आभार व्यक्त किया. वहीं शौर्य के पिता राजीव शरण लखनऊ में वकील हैं. उनका कहना है कि लखनऊ में ईसीएमओ की सुविधा नहीं थी. इस बारे में उन्हें कुछ पता भी नहीं था. उन्होंने बच्चे की जान बचाने को लेकर डॉक्टरों का आभार व्यक्त किया.
शौर्य को पहले वेंटिलेटर पर रखा गया था. इसे बाद उसे एक्स्ट्राकोरपोरील मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन यानी ईसीएमओ के लाइफ सपोर्ट पर रखा गया. इस तकनीक की वजह से एक बाहरी मशीन में शरीर के खून को आक्जीनेट किया गया और भेजा जाता है और उससे कार्बन डाईऑक्साइड को हटाया जाता है. इस तरह से 65 दिनों में शौर्य ठीक हुआ है. उसे फेफड़े ट्रांसप्लांट कराने की जरूरत नहीं पड़ी.
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