एक ऐसा गांव जहां आज भी नाव पर बारात सजती है, नाव पर ही जाते हैं दूल्हे दुल्हन
बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी प्रखंड क्षेत्र का एक ऐसा गांव जहां साल के तीन महीना बारिश में तो आगे तीन महीने बाढ़ के पानी में जलमग्न रहता है.
मधुबनी:
बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी प्रखंड क्षेत्र का एक ऐसा गांव जहां साल के तीन महीना बारिश में तो आगे तीन महीने बाढ़ के पानी में जलमग्न रहता है. अधवारा समूह की नदियों से चारों से घिरे करहारा गांव में बाढ़ बरसात के दिनों में शादी विवाह का आयोजन किसी मुसीबत से कम नहीं होती. सारी खुशियां लाचारी और बेबसी में तब्दील होकर रह जाती है. हर साल बाढ़ में इन गांवों में कई शादियां नाव और नाविकों के सहारे संपन्न होती है. जहां वर और वधु दोनों नाव पर बारात आने जाने की रश्में पूरी करते हैं.
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बुधवार और गुरुवार को भी ऐसा ही वाकया तब देखने को मिला जब दरभंगा जिले से बारात लेकर बेनीपट्टी के करहारा गांव के लिए दर्जनों वाहनों के काफिले के साथ निकला, जिसमें फूलों और मालाओं से सजे दूल्हे के वाहन के साथ दर्जनों वाहन के काफिले बेनीपट्टी के सोइली पहुंचे. सोइली के पास आते ही बारात में शामिल लोगों के चेहरे के रंग उड़ गए. बाढ़ के पानी से टापू में तब्दील इलाके को देखकर वर पक्ष के लोगों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर क्या किया जाए.
बाद में करहारा गांव के लोग पहुंचे और प्रशासन को शादी का हवाला देकर नाव उपलब्ध कराने का आग्रह किया तो एक प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि नाव उपलब्ध नहीं है, आप लोग अपने स्तर से इंतजाम कीजिए. बस सारे बैंड बाजे धरे के धरे रह गए और आनन फानन में 1700 रुपये में एक मछुआ सोसाइटी से नाव भाड़े पर मंगवाई गई. वर और उनके कुछ परिजन नाव पर सवार होकर करहारा गांव पहुंचे. जहां आनन-फानन में शादी की रस्में पूरी की गई. फिर दो घंटे में ही वधू की विदाई की रश्में भी नाव से हुई और नाव पर सवार होकर वर वधु दोनों साजों समान के साथ जिंदगी की नई पारी की शुरुआत करने की कल्पना करते हुए पुनः सोइली की ओर रवाना हो गए.
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विदाई की रश्में इसलिये इतनी जल्दी पूरी की गई कि रात के अंधेरे में नाव का परिचालन मुश्कित थी. बता दें दरभंगा जिले के करहटिया गांव से मो. हुसैन के लड़का की बारात आई थी और करहारा के मोहम्मद अली की बेटी के साथ निकाह होना था. इतना ही नहीं गुरुवार को भी दूसरी शादी करहारा से बिरदीपुर हुई. जिसमें करहारा का वर ने बिरदीपुर की बधू के साथ निकाह की सारी रश्में पूरी कर नाव से आने जाने की प्रक्रिया पूरी हुई. कई
लोगों ने बताया कि करहारा पंचायत की किस्मत ही कुछ ऐसी बनकर रह गई है. आजादी के बाद से ही करहारा के पूल की मांग कर रहे हैं लेकिन अब तक एक अदद पुल तक नसीब नही हो सका है. लोगों ने यह भी कहा कि अब तो स्थिति कुछ बदली है. कई वर्ष पूर्व तो लोग इस गांव में शादी विवाह करने से भी कतराते थे और और किसी तरह बात बन भी जाती थी तो दहेज में नाव की मांग की जाती थी.
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