उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का डेहरी गांव इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. यहां के मुस्लिम समाज के कुछ लोग अपने नाम के साथ हिंदू ब्राह्मण गोत्र और टाइटल जैसे ‘दुबे’ और ‘शुक्ला’ जोड़ते हैं. इनका मानना है कि उनके पूर्वज ब्राह्मण थे, और इस परंपरा को अपनाकर वे अपनी जड़ों से फिर से जुड़े गए हैं.
आज भी करते हैं गौ सेवा
डेहरी गांव के 60 वर्षीय नौशाद अहमद, जिन्हें गांव के लोग ‘दुबे जी’ कहकर बुलाते हैं, इस बदलाव के प्रमुख उदाहरण हैं. उन्होंने एक मीडिया चैनल से बात करते हुए बताया कि उनके पूर्वज सात पीढ़ी पहले हिंदू ब्राह्मण थे, लेकिन किसी कारणवश उन्होंने इस्लाम अपना लिया था. इसके बावजूद, उनके परिवार में ब्राह्मण परंपराओं की झलक बनी रही. बता दें कि नौशाद आज भी तिलक लगाते हैं, गौ सेवा करते हैं और वजू भी करते हैं.
केवल नौशाद ही नहीं, बल्कि गांव के अन्य लोग, जैसे अशरफ और शिराज, भी अपने नाम के आगे ‘दुबे’ और ‘शुक्ला’ जैसे टाइटल लगाते हैं. इनका मानना है कि उनकी पहचान केवल धर्म से नहीं, बल्कि उनके पूर्वजों से भी जुड़ी है.
क्यों जोड़ा ब्राह्मण गोत्र?
नौशाद दुबे बताते हैं कि उन्हें बचपन से इस बात का आभास हो गया था कि उनके परिवार की कास्ट, जैसे शेख, पठान, या सैय्यद, उनकी मूल पहचान नहीं है. उनके पूर्वजों ने उन्हें बताया था कि वे रानी की सराय, आजमगढ़ से जौनपुर आए ब्राह्मण थे. अपनी इस विरासत को सम्मान देने के लिए उन्होंने अपने नाम के साथ दुबे लगाना शुरू किया. उनका कहना है कि धर्म परिवर्तन के बाद भी उनके परिवार ने कई ब्राह्मण परंपराओं को बनाए रखा. जैसे, वे तिलक लगाने और गौ सेवा करने को अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं.
क्या कहते हैं गांव वाले?
गांव के अन्य लोग भी इस परंपरा को लेकर काफी सहज हैं. नौशाद दुबे को उनके पड़ोसी सम्मान से ‘दुबे जी’ कहकर पुकारते हैं. वे इसे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ों से जुड़ने की कोशिश मानते हैं.
क्या कहती है यह परंपरा?
यह घटना धर्म और जाति की गहरी जड़ों और बदलाव की कहानी को बयां करती है. भारत में धर्म परिवर्तन के बावजूद, कई परिवार अपनी सांस्कृतिक और पूर्वजों की परंपराओं को जीवित रखते हैं.
डेहरी गांव का यह उदाहरण न केवल इतिहास की झलक देता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि लोग अपनी पहचान को लेकर कितने सजग हो सकते हैं. यह घटना समाज के लिए एक नई दृष्टि प्रदान करती है, जहां धर्म और जाति से परे, लोग अपने पूर्वजों और सांस्कृतिक जड़ों को अपनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं.
ये भी पढ़ें- एक बार नहीं बल्कि 8 बार पलटी कार, बाहर निकलते ही लोग बोले- चाय दे दो प्लीज!