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पीएम नरेंद्र मोदी Photograph: (NN)
साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद संभाला, तो उनकी प्राथमिकताएं सिर्फ आर्थिक सुधार या सुरक्षा तक सीमित नहीं रहीं. उन्होंने एक ऐसा विषय उठाया, जिसे दशकों तक किसी सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया था साफ-सफाई. यही से शुरू हुआ स्वच्छ भारत मिशन, जिसने धीरे-धीरे इसे सरकारी योजना से आगे बढ़ाकर जनआंदोलन का रूप दे दिया.
पहले सफाई की परिभाषा सीमित थी
2014 से पहले ज्यादातर लोगों के लिए सफाई का मतलब था घर या दफ्तर को साफ रखना. सड़कों, मोहल्लों और सार्वजनिक जगहों पर गंदगी फैलाना कोई बड़ी बात नहीं मानी जाती थी. यही वजह रही कि सफाई कभी राष्ट्रीय प्राथमिकता नहीं बन पाई.
पीएम मोदी का नया नजरिया
पीएम मोदी ने साफ कहा कि भारत को विकास की दौड़ में तभी आगे बढ़ाया जा सकता है, जब देश गंदगी से मुक्त हो. उन्होंने खुद झाड़ू उठाकर लोगों को उदाहरण दिया. पहली बार देश ने देखा कि प्रधानमंत्री सड़क पर सफाई कर रहे हैं. इस कदम ने जनता को गहराई से प्रभावित किया और साफ-सफाई को समाज का साझा कर्तव्य बनाने का संदेश दिया.
बच्चों और युवाओं पर असर
मिशन ने स्कूलों और कॉलेजों में नई सोच पैदा की. बच्चों को स्वच्छता की शपथ दिलाई गई, युवाओं ने अभियान में भाग लेना शुरू किया. आने वाली पीढ़ी के लिए गंदगी को सामान्य मानने की आदत धीरे-धीरे टूटने लगी.
गांवों में बड़ा बदलाव
ग्रामीण भारत में खुले में शौच सबसे बड़ी समस्या थी. शौचालय निर्माण और उज्ज्वला योजना के साथ मिशन ने ग्रामीण जीवन को नया आयाम दिया. करोड़ों परिवारों ने शौचालय अपनाए और यह अब सामाजिक मानक बन गया.,
लोगों के मानसिकता पर किया अटैक
सबसे अहम बदलाव यह हुआ कि लोग अब सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फैलाने वालों को टोकने लगे. नगरपालिकाओं ने भी गीले और सूखे कचरे का अलग प्रबंधन शुरू किया. धीरे-धीरे शहरों और कस्बों की तस्वीर बदलने लगी.
सामाजिक और आर्थिक लाभ
स्वच्छता ने न सिर्फ बीमारियों का खतरा घटाया, बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा दिया। साफ-सुथरे शहर और स्मारक विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने.
आलोचना और चुनौतियां
हालांकि शुरुआत में आलोचकों ने इसे सिर्फ दिखावा कहा, लेकिन समय के साथ इसका असर जमीन पर दिखने लगां गांवों में शौचालय, बदली हुई आदतें और जागरूकता ने इन सवालों को कमजोर कर दिया. हां, अभी भी कई जगह काम बाकी है, लेकिन नींव मजबूत हो चुकी है.
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