बड़े इरादों के साथ मध्य प्रदेश के रण में उतरे छोटे दल, बीजेपी-कांग्रेस की बढ़ा रहे टेंशन
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस जहां अपने बागियों से परेशान हैं, वहीं छोटे दल भी दोनों दलों का खेल बिगाड़ने के लिए डटे हैं.
नई दिल्ली:
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस जहां अपने बागियों से परेशान हैं, वहीं छोटे दल भी दोनों दलों का खेल बिगाड़ने के लिए डटे हैं. पिछली बार दोनों दलों के अलावा 64 पार्टियों ने चुनाव लड़ा था. हालांकि इनमें से बसपा (BSP), सपा (SP) और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी पूरी ताकत से चुनाव लड़ी और ठीक-ठाक वोट बटोरी. इस बार भी दिखने में छोटे लेकिन बड़े इरादे लेकर ये पार्टियां मध्य प्रदेश के रण में ताल ठोंक रही हैं.
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चुनाव प्रचार के जोर पकड़ने के साथ सभी की नजर इन क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका पर टिक कई है. बीजेपी और कांग्रेस की लड़ाई को ये दल अपने लिए एक अवसर के तौर पर देख रहे हैं. बसपा, सपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी पूरी ताकत से चुनाव लड़ रही है. बसपा व सपाक्स जैसे संगठन बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं. अगर अब तक हुए चुनावों की बात करें तो लड़ाई यहां मुख्यतः बीजेपी और कांग्रेस और बीजेपी की ही रही है.
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मध्य प्रदेश में तीसरा मोर्चा या छोटे दल चुनाव परिणाम पर कोई खास असर नहीं डाल पाए हैं, लेकिन इस बार स्थिति पहले जैसी नहीं है. पिछले चुनाव में बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने कई सीटों पर दस हजार से अधिक वोट झटके थे. अगर इस बार भी ऐसा रहा तो ये दल बीजेपी और कांग्रेस के लिए चिंता का सबब होंगे.
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सपा के साथ सामान्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी एवं अधिकारियों का संगठन (सपाक्स) , जय युवा आदिवासी संगठन (जयस), बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी बीजेपी और कांग्रेस के लिए दिक्कत पैदा करेंगे. सवर्ण समाज का नेतृत्व जहां सपाक्स कर रहा है तो वहीं आदिवासी जयस से जुड़ रहे हैं. ऐसे में सपाक्स बीजेपी के सवर्ण वोट बैंक में सेंध लगा सकता है. जबिक कांग्रेस के आदिवासी वोट बैंक पर जयस की पकड़ भी मजबूत हो रही है.
सॉफ्ट हिंदुत्व और सत्ता विरोधी लहर के सहारे कांग्रेस
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सॉफ्ट हिंदुत्व वाली छवि और शिवराज सिंह सरकार विरोधी लहर उठने की उम्मीद में पार्टी को बसपा से गठबंधन न होने से सवर्ण मतदाताओं के वोट की आस है.मध्य प्रदेश चुनाव में क्षेत्रीय दलों से कांग्रेस को 50 से अधिक सीट पर नुकसान हो सकता है. आदिवासी संगठन जयस आदिवासी क्षेत्रों में पार्टी का गणित बिगाड़ सकता है. उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे क्षेत्रों में बसपा और सपा का अच्छा खासा असर है. गोंडवाना पार्टी का असर महाकौशल में है. इस क्षेत्र की करीब 10 सीटों पर गोंडवाना पार्टी का असर है. 2003 के चुनाव में गोंडवाना पार्टी ने तीन सीटें जीती थी.
बसपा का दम
- 230 सीटों पर चुनाव लड़ रही बसपा पिछले 25 सालों से मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रही है.
- 1993 के चुनावा में बसपा के 11 विधायक चुनकर आए थे, जबिक पिछले चुनाव में चार सीटों पर बीएसपी ने जीत हासिल की थी.
- राज्य की 15 फीसदी अनुसूचित जातियों में बसपा का खासा प्रभाव है, 2013 की विधानसभा चुनाव में बसपा को- 6.29 फीसदी मत मिले थे.
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का दम ः 230 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को पिछले चुनाव में कुल पड़े वोटों में से 1 फीसदी हिस्सेदारी थी. बालाघाट, मंडला जैसे जिलों में पार्टी का खासा प्रभाव है.
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एक बार फिर पैठ बनाने की कोशिश में सपा
- मध्यप्रदेश में 1993 में पहली बार सपा ने एक सीट जीती थी.
- 1998 में यह आंकड़ा बढ़कर चार हो गया. जबकि 2003 में सपा सात सीटें जीतने में कामयाब हुई.
- 2003 में पार्टी को सबसे अधिक 3.7 फीसदी मत मिले, लेकिन इसके बाद से गिरावट आई 2013 में पार्टी को मात्र 1.2 फीसदी मत मिले.
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आदिवासी समाज में जायस की पैठ
- जय आदिवासी युवा शक्ति (जायस) पहली बार चुनावी राजनीति में किस्मत आजमा रही है.
- जायस ने मालवा-निमार 28 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, इनमें 22 एसटी के लिए आरक्षित .
- मध्य प्रदेश की कुल आबादी में आदिवासियों की 22 फीसदी हिस्सेदारी है.
कर्मचारियों के वोटों के भरोस सपाक्स
- सपाक्स का पूरा नाम सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था है.
- 230 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का कर चुकी ऐलान, पूर्व सरकारी कर्मी इसके सदस्य हैं .
- हीरालाल त्रिवेदी हैं इसके अध्यक्ष, पार्टियों के कथित वोट बैंक की राजनीति के खिलाफ है मोर्चा.
पंच दलों का गठबंधन बीजेपी को टेंशन
बीजेपी को हराने के लिए शरद यादव का लोकतांत्रिक जनता दल, भाकपा, माकपा, बहुजन संघर्ष दल और प्रजातांत्रिक समाधान पार्टी मिलकर चुनावी मैदान में हैं.
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