हम सभी ने यह घटना अपने आसपास महसुस की होगी कि अक्सर जब मां-बाप अपने बच्चों को जन्म देते हैं, तो उनका बच्चा काला पैदा होता है. जिसके बाद हर कोई हैरान हो जाता है कि मां-बाप गोरे है, लेकिन बच्चा क्यों काला पैदा हुआ है. जिसके बाद लोगों को लगता है कि जरूर कुछ ना कुछ दिक्कत है, लेकिन ऐसा नहीं होता है. आइए आपको इसके पीछे का साइंटिफिक रीजन बताते है.
क्या होता है नवजात की त्वचा का रंग?
कई डॉक्टरों का कहना है कि नवजात शिशु की त्वचा का रंग जन्म के समय अस्थायी रूप से गहरा होता है. "नवजात शिशुओं की त्वचा गहरे रंग की या लाल हो सकती है, लेकिन समय के साथ यह रंग हल्का हो जाता है". कई शिशुओं की त्वचा जन्म के तुरंत बाद लाल या गहरे रंग की होती है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है तो उनकी त्वचा का रंग बदलने लगता है.
त्वचा के रंग का परिवर्तन
मेडिकल टीम ने बताया कि नवजात शिशुओं की त्वचा में पतले टिशू और खराब रक्त संचार की वजह से यह रंग परिवर्तन होता है. इसके बाद जब शिशु सांस लेना शुरू करता है, तो उनकी त्वचा का रंग भी बदलने लगता है. आमतौर पर, "नवजात शिशु की त्वचा का रंग पहले दिन में लाल हो जाता है और पहले दिन के बाद यह रंग हल्का होने लगता है". डॉक्टरों का मानना है कि शिशु का असली रंग करीब 3 से 6 महीने में दिखाई देता है.
पैटर्निटी टेस्ट जरूरी है?
वहीं कई लोग बच्चे के रंग को देखकर सोच में पड़ जाते हैं कि क्या वह बच्चा वास्तव में उनका है कि या नहीं. जिसके लिए लोग पैटर्निटी टेस्ट करवाते हैं. यह मामला अब समाज में एक बड़ा विवाद बन गया है. हालांकि, कुछ डॉक्टरों ने यह भी कहा है कि इस तरह की घटनाएं असामान्य नहीं हैं, और यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया हो सकती है. दरअसल, कभी -कभी जन्म के समय एक बच्चे का रंग अस्थायी रूप से अलग दिख सकता है. डॉक्टरों के मुताबिक, नवजात शिशु के रंग में बदलाव समय के साथ हो सकता है. हालांकि, बच्चे के असामान्य रंग के कारण परिवार में उत्पन्न हुआ विवाद और तलाक का मामला समाज में एक नई बहस का कारण बन चुका है.
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