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Rama Ekadashi Vrat Katha 2025
Rama Ekadashi Vrat Katha 2025: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रमा एकादशी कहा जाता है. हिंदू धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि ये दिवाली से पहले होने के साथ-साथ चातुर्मास की आखिरी एकादशी होती है. रमा एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ व्रत रखने का विधान है. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
इस व्रत को करने से मां लक्ष्मी, विष्णु जी की असीम कृपा बरसती है. इसके साथ ही जीवन के हर एक दुख-दर्द दूर होते हैं. रमा एकादशी के दिन विधिवत पूजा करने के साथ-साथ इस व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. इससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है. ऐसे में आइए जानते हैं रमा एकादशी की व्रत कथा के बारे में.
रमा एकादशी व्रत कथा
कथा के अनुसार, बहुत समय पहले की बात है जब मुचुकुंद नामक एक महान राजा राज्य करता था. वह बहुत ही सत्यवादी था और भगवान विष्णु का परम भक्त भी था. उसकी पुत्री का नाम चंद्रभागा था जिसका विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन से हुआ. एक दिन शोभन ससुराल आया. उसके कुछ ही दिनों में रमा एकादशी आने वाली थी जिस पर राजा मुचुकुंद ने पूरे नगर में यह घोषणा कर दी कि एकादशी के दिन कोई भी व्यक्ति भोजन ग्रहण नहीं करेगा. यह बात सुनकर शोभन बहुत परेशान हो गया और उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह भोजन किए बिना नहीं रह सकूंगा.
व्रत करने को तैयार हुआ शोभन
तब चंद्रभागा शोभन से कहती है कि इस नगर में केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी भी एकादशी व्रत धारण करते हैं. ऐसे में अगर आपको भोजन करना है तो नगर से कहीं दूर चले जाइए अन्यथा आपको व्रत धारण करना होगा. यह सुनकर शोभन कहता है कि प्रिये मैं इस व्रत को अवश्य करूंगा मेरे भाग्य में जो लिखा है वहीं होगा. शोभन ने पूरा श्रद्धा के साथ एकादशी का व्रत रखा. दिन बीतने के बाद शोभन को कमजोरी महसूस होने लगी. रात में जागरण के समय उसकी हालत और भी खराब हो गई. सुबह होने से पहले शोभन की मौत हो गई.तब उसका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार कर दिया गया.
चंद्रभागा ने भी किया व्रत
इसके बाद राजा मुचुकुंद मंदराचल पर्वत पहुंचे तो उन्होंने पाया कि रमा एकादशी के प्रभाव से उनके दामाद शोभन को वहां पर धन-धान्य से एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई. लौटने के बाद यह बात राजा ने अपनी पुत्री को बताई जिससे वह बहुत प्रसन्न हुई. इसके बाद चंद्रभागा ने भी रमा एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से वह भी अपने पति के पास चली गई.
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