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tear( Photo Credit : News Nation)
अक्सर लोग अपने आपको शक्तिशाली दिखाने के लिए कहते हैं कि मैं कभी रोता नहीं या छोटी मोटी बात पर रोना मेरी आदत नहीं. कई लोग तो रोने पर कमेंट करते हैं कि कितना कमजोर दिल है तुम्हारा लेकिन कमाल की बात ये है कि रोने वाले नहीं बल्कि नहीं रोने वालों का दिल कमजोर होता है. हैरान मत होइए, तमाम चिकित्सा विशेषज्ञ और मनोचिकित्सक भी अब यह मामने लगे हैं कि रोने के कई फायदे हैं. दरअसल, कई लोग अपने मन के दुख और दर्द को दबा लेते हैं और रोते नहीं हैं, ऐसे में उन्हें हृदय रोग, अवसाद, गुस्सा आदि बढ़ने की आशंका होती है. जबकि रो लेने से मन हल्का हो जाता है.
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दरअसल, रोने से मन में दबे तमाम अवसाद निकल जाते हैं. मनोचिकित्सकों के अनुसार जो लोग अक्सर रो लेते हैं, उन्हें दिल की बीमारी होने का डर कम होता है. इसके अलावा रोते समय हमारी आंखों से आंसू निकलते हैं. ये टॉक्सिन का काम करते हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार आंसू निकलने से आंखों की भी सफाई हो जाती है. यही नहीं, साल 2014 में हुए एक शोध के मुताबिक हमारे शरीर में पैरासिम्प्थेटिक नर्वस सिस्टम (पीएनएस) उत्तेजित हो जाता है. इसी पीएनएस की वजह से शरीर को आराम करने और डाइजेशन में मदद मिलती है. इसके अलावा यदि शरीर में कहीं भी दर्द है तो रोने से यह दर्द कम होता है. दरअसल, रोने से आक्सिटोसिन और इन्डॉर्फिन जैसे केमिकल्स रिलीज होते हैं. ये ऐसे केमिकल हैं, जिनसे शारीरिक और मानसिक दर्द कम होता है. आक्सिटोसिन हमें राहत का अहसास कराता है. रोना आपके स्ट्रेस को भी कम करता है. आजकल व्यस्त जीवनशैली में लोगों में स्ट्रेस बढ़ता जा रहा है. रोना आपके मन से स्ट्रेस कम करता है. यहां आपको यह भी बता दें कि आजकल की तमाम बीमारियों का कारण स्ट्रेस है. ऐसे में रोना आपको इनडायरेक्टली बहुत सारी बीमारियों से बचा लेता है.
इसी के साथ एक और बात बता दें आपको, कि आंसू आपकी आंखों के मेमब्रेन को सूखने नहीं देते. सूखने की वजह से आंखों की रोशनी में फर्क पड़ता है. इस वजह से लोगों को कम दिखना शुरू हो जाता है. मेमब्रेन सही बना रहता है तो आंखों की रोशनी भी ठीक बनी रहती है. तो जनाब अब कभी किसी को रोत हुए देखिए तो उसे कमजोर मत समझिएगा बल्कि सोचिएग की वह कितनी सारी बीमारियों से सुरक्षित हो रहा है.
HIGHLIGHTS
- रोने के हमारे स्वास्थ्य पर पड़ते हैं सकारात्मक प्रभाव
- रोेने को कमजोरी की निशानी समझना है गलत
- तमाम मनोवैज्ञानिक और विशेषज्ञों की राय