Delhi Pollution: बच्चों के दिमाग को खोखला कर रहा प्रदूषण, लंबे समय तक संपर्क में रहने से होंगी ये खतरनाक बीमारियां, स्टडी में खुलासा

Delhi Pollution: दिल्ली-NCR में सांस लेना और आंख खोलना भी मुश्किल हो गया है. प्रदूषण से सिर्फ आंखों में जलन और फेफड़ों को ही नहीं बल्कि बच्चों के दिमाग पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

Delhi Pollution: दिल्ली-NCR में सांस लेना और आंख खोलना भी मुश्किल हो गया है. प्रदूषण से सिर्फ आंखों में जलन और फेफड़ों को ही नहीं बल्कि बच्चों के दिमाग पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

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Akansha Thakur
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Delhi Pollution: दिल्ली-एनसीआर में इन दिनों हर तरफ प्रदूषण की चर्चा है. हवा की खराब गुणवत्ता ने लोगों की सेहत को बुरी तरह प्रभावित करना शुरू कर दिया है. यह समस्या सिर्फ खांसी या सांस तक सीमित नहीं है. डॉक्टरों का कहना है कि प्रदूषण दिल और दिमाग को भी अंदर से नुकसान पहुंचा रहा है. अमेरिकी अध्ययन के अनुसार, आज के समय में वायु प्रदूषण एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य चुनौती बन चुका है. जब एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI लंबे समय तक खराब रहता है, तो इसका असर बच्चों के दिमाग पर पड़ता है. इसे नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है. 

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स्टडी में क्या हुआ खुलासा? 

अमेरिकी अध्ययन के अनुसार, बच्चों का दिमाग अभी विकसित हो रहा होता है. इसी वजह से वे वायु प्रदूषण में मौजूद जहरीले तत्वों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं. प्रदूषित हवा के सूक्ष्म कण सीधे मस्तिष्क के विकास और उसके काम करने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं. जब शरीर लगातार हाई AQI के संपर्क में रहता है, तो सूजन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. सर्दियों में ठंड के कारण यह असर और बढ़ जाता है. यह सूजन दिमाग की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है. इसका नतीजा यह होता है कि बच्चों को ध्यान लगाने में परेशानी होती है. सीखने की क्षमता घटती है. चिड़चिड़ापन, उदासी और व्यवहार संबंधी समस्याएं भी बढ़ने लगती हैं.

बच्चों में हो सकती हैं ये खतरनाक बीमारियां

स्टडी के अनुसार, जिन बच्चों को पहले से ADHD, अल्जाइमर, डिमेंशिया, पार्किंसंस रोग जैसी समस्याएं हो सकती हैं, उनमें प्रदूषण के कारण लक्षण और गंभीर हो सकते हैं. ऐसे बच्चों में बेचैनी, गुस्सा, आवेगशीलता और अवसाद बढ़ने की आशंका रहती है. प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए शरीर को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। इसका सीधा असर दिमाग पर पड़ता है. खासकर अस्थमा, एंग्जायटी या ऑटिज़्म से जूझ रहे बच्चों में घबराहट, पैनिक अटैक, नींद की कमी और व्यवहार में बदलाव ज्यादा देखने को मिलते हैं.

बच्चों को प्रदूषण से बचाना क्यों है जरूरी? 

विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण को सिर्फ पर्यावरण या सांस की बीमारी मानना गलत है. यह एक बड़ी मानसिक स्वास्थ्य समस्या भी है. हाई AQI वाले दिनों में बच्चों को बाहर खेलने से रोकना चाहिए. मास्क का इस्तेमाल जरूरी है. घर के अंदर साफ हवा का ध्यान रखना चाहिए. अगर बच्चे के व्यवहार या भावनाओं में बदलाव दिखे, तो तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए. क्योंकि साफ हवा सिर्फ फेफड़ों के लिए नहीं, बल्कि बच्चों के स्वस्थ दिमाग और मानसिक संतुलन के लिए भी बेहद जरूरी है.

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