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BJP working president Nitin Nabeen: भारतीय जनता पार्टी ने 14 दिसंबर 2025 को ऐसा निर्णय लिया, जिसने राष्ट्रीय राजनीति में नई बहस को जन्म दे दिया. बिहार सरकार के कैबिनेट मंत्री और पांच बार के विधायक नितिन नबीन को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया. महज 45 वर्ष की उम्र में यह पद संभालना उन्हें बीजेपी के इतिहास के सबसे युवा राष्ट्रीय नेताओं में शामिल करता है.
जेपी नड्डा के बाद संगठनात्मक ढांचे में उनका उभार बीजेपी की भविष्य की राजनीति की ओर इशारा करता है. लेकिन इन सबसे ज्यादा बात जिसकी हो रही है वह बंगाल का भद्रलोक जी हां इससे नितिन नबीन का खास कनेक्शन है. आइए जानते हैं क्यों हो रही बंगाल के भद्रलोक की चर्चा और क्या है इससे नितिन नबीन का नाता.
बिहार से दिल्ली और नजर बंगाल पर
नितिन नबीन भले ही बिहार के बांकीपुर से आते हों, लेकिन उनकी नियुक्ति को केवल बिहार तक सीमित नहीं देखा जा रहा. राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि बीजेपी इस फैसले के जरिए पश्चिम बंगाल की जमीन मजबूत करना चाहती है. 2026 के विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की टीएमसी को चुनौती देना बीजेपी का सबसे बड़ा लक्ष्य है और इसके लिए पार्टी हर सामाजिक और सांस्कृतिक समीकरण को साधने की कोशिश में है.
कायस्थ पहचान और बंगाल कनेक्शन
नितिन नबीन की सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी उनकी कायस्थ पहचान मानी जा रही है. बंगाल में कायस्थ समुदाय ऐतिहासिक रूप से सत्ता, प्रशासन और बौद्धिक जगत का हिस्सा रहा है. बिहार और बंगाल के बीच सांस्कृतिक समानताएं भी बीजेपी की रणनीति को बल देती हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि नितिन नबीन के जरिए बीजेपी बंगाल के उस वर्ग तक पहुंच बनाना चाहती है, जो खुद को नेतृत्वकर्ता और ट्रेंडसेटर मानता है.
क्या है ‘भद्रलोक’ और क्यों है अहम?
‘भद्रलोक’ बंगाली समाज का वह बौद्धिक और सांस्कृतिक वर्ग है, जिसने 19वीं सदी के बंगाल पुनर्जागरण से लेकर अब तक राज्य की सोच को दिशा दी है. ब्राह्मण, कायस्थ और वैद्य समुदायों से बना यह वर्ग शिक्षा, साहित्य, कला और राजनीति में प्रभावशाली रहा है. मौजूदा समय में शहरी इलाकों में भद्रलोक का वोट प्रतिशत भले सीमित हो, लेकिन राजनीतिक माहौल बनाने की ताकत उसी के पास है.
ऐतिहासिक प्रभाव और राजनीतिक संदेश
पश्चिम बंगाल का इतिहास गवाह है कि लंबे समय तक सत्ता की कमान भद्रलोक के हाथों में रही. ज्योति बसु, विधान चंद्र रॉय जैसी हस्तियां इसका उदाहरण हैं. ऐसे में नितिन नबीन की नियुक्ति बीजेपी का एक प्रतीकात्मक संदेश भी है कि पार्टी बंगाल की बौद्धिक और सांस्कृतिक चेतना को समझती है और उसी भाषा में संवाद करना चाहती है.
मास्टरस्ट्रोक या जोखिम भरा प्रयोग?
राजनीतिक विश्लेषक इस फैसले को अमित शाह की 'लॉन्ग टर्म स्ट्रैटेजी' का हिस्सा मान रहे हैं. सवाल यह है कि क्या बिहार के नेता का चेहरा बंगाल के भद्रलोक को वास्तव में प्रभावित कर पाएगा? यह तय है कि नितिन नबीन की नियुक्ति ने बीजेपी की बंगाल योजना को नई धार दी है. अब देखना होगा कि यह दांव चुनावी जमीन पर कितना असर दिखाता है.
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