India America Tariff: भारत और अमेरिका के बीच बहुप्रतीक्षित व्यापार समझौते को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गुरुवार को कहा कि यह प्रक्रिया बेहद जटिल है और जब तक हर मुद्दे पर सहमति नहीं बनती, तब तक किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाज़ी होगी. उन्होंने यह बयान नई दिल्ली में होंडुरास के नए दूतावास के उद्घाटन कार्यक्रम में दिया. जयशंकर ने साफ कहा, “कोई भी व्यापार समझौता तभी सफल माना जाएगा, जब वह दोनों देशों के लिए लाभकारी हो. यह हमारी स्पष्ट अपेक्षा है. जब तक यह संतुलन नहीं बनता, तब तक किसी भी प्रकार का निष्कर्ष देना जल्दबाज़ी होगी.”
भारत ने लगाए हैं 27 परसेंट
यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप दोबारा सत्ता में लौट चुके हैं और उनके साथ इंपोर्ट ड्यूटी की सख्त नीति भी. ट्रंप ने अप्रैल में भारत पर लगभग 27% प्रतिशोधात्मक टैरिफ लगाए थे, जो फिलहाल 9 जुलाई तक स्थगित कर दिए गए हैं. इसके अलावा अमेरिका ने सभी देशों पर 10% का बेसलाइन टैक्स और स्टील, एल्युमिनियम व ऑटो पार्ट्स पर 25% का टैक्स अभी भी जारी रखा है.
भारत ने टैक्स कम किए हैं
भारत ने ट्रंप की टैक्स नीति के जवाब में कुछ अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क कम किया, जिनमें मोटरसाइकिल और बॉर्बन व्हिस्की शामिल हैं. हालांकि भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह इन टैरिफ्स पर जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा. भारत का संदेश स्पष्ट है. “दिल्ली एक भरोसेमंद व्यापार साझेदार रहना चाहता है.”
भारत ने क्या की है मांग?
अप्रैल में इस दिशा में एक बड़ा कदम तब देखा गया जब अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस भारत दौरे पर आए और प्रधानमंत्री से मुलाकात की. इसके बाद ट्रंप ने कहा कि “मुझे लगता है भारत से व्यापार समझौता जल्द होगा, वे करना चाहते हैं.” संभावित समझौते में दोनों देशों के बीच 24 श्रेणियों के उत्पादों को शामिल किया जा सकता है. इनमें कृषि उत्पाद जैसे सोयाबीन, कॉर्न और रक्षा उपकरण शामिल हैं. भारत ने इसके बदले कपड़ा, खिलौने, चमड़ा, आभूषण और ऑटो पार्ट्स जैसे लेबर-इंटेंसिव क्षेत्रों के लिए रियायती टैरिफ की मांग की है.
2030 तक 500 बिलियन डॉलर का होगा बिजनेस
अगर यह समझौता तय होता है, तो इसका लक्ष्य है कि 2030 तक भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार को $500 बिलियन के पार ले जाया जाए. वहीं इन बातचीतों की पृष्ठभूमि में भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया ‘100 घंटे की जंग’ और ऑपरेशन सिंदूर भी चर्चा में है, जिसने क्षेत्रीय हालात को और संवेदनशील बना दिया है. अब देखना होगा कि क्या भारत और अमेरिका इस जटिल बातचीत को सफल अंजाम तक ले जा पाते हैं या फिर यह अभी और खिंचेगा.
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