Waqf Act 2025: सुप्रीम कोर्ट मंगलवार (20 मई, 2025) को वक्फ (संशोधन) कानून 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. ऐसा माना जा रहा है कि शीर्ष अदालत इस मामले में अंतरिम आदेश भी पारित कर सकता है. इससे पहले 15 मई को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई 20 मई तक के लिए टाल दी.
इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह तीन मुद्दों पर अंतरिम निर्देश पारित करने के लिए दलीलों पर सुनवाई करेगी. उनमें 'वक्फ बाई यूजर' यानी 'वक्फ बाई डीड' द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने से जुड़ा है. इसके अलावा याचिकाकर्ताओं ने राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित मुद्दा भी उठाया है.
वक्फ एक्ट को लेकर याचिकाकर्ताओं के तर्क
वक्फ (संशोधन) एक्ट, 2025 को लेकर याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिए हैं कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमान ही इसका संचालन करें. इसके अलावा एक मुद्दा उस प्रावधान से जुड़ा है जिसके तहत जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करेगा कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तब उस वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.
जानें क्या है वक्फ बाय यूजर?
दरअसल, वक्फ बाय यूजर ऐसी संपत्तियों को कहा जाता है जिनका इस्तेमाल लंबे समय से वक्फ संपत्ति के रूप किया जा रहा हो. फिर चाहे उसके नाम पर कोई लिखित वक्फ डीड या दस्तावेज नहीं हो, ऐसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति माना जाता है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने वक्फ संशोधन कानून की वैधता को चुनौती देने वालों की ओर से पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अन्य के साथ केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से सोमवार यानी 19 मई तक अपने लिखित नोट्स जमा करने को कहा था.
वहीं शीर्ष अदालत ने ये भी स्पष्ट किया कि मूल वक्फ कानून 1995 पर अंतरिम रोक लगाने की मांग पर विचार नहीं किया जाएगा. इसके साथ ही पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों को बताया था कि जजों को दलीलों का अध्ययन करने में और समय लग सकता है.
5 अप्रैल नए वक्फ कानून को राष्ट्रपति ने दी मंजूरी
बता दें कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसी साल 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को मंजूरी दी थी. इसी के साथ केंद्र ने इस कानून को अधिसूचित कर दिया. लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक का 288 सांसदों ने समर्थन किया था, जबकि इसके विरोध में 232 सांसदों ने वोट डाले थे. वहीं राज्यसभा में 128 सदस्यों ने इसके पक्ष में और 95 सांसदों ने इसके खिलाफ मतदान किया था.
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