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Supreme Court Photograph: (Social Media)
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (15 सितंबर) को साफ कर दिया कि POSH एक्ट (कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देने वाला कानून) राजनीतिक दलों पर लागू नहीं होगा. कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दल कार्यस्थल की परिभाषा में नहीं आते क्योंकि यहां न तो नियोक्ता-कर्मचारी का रिश्ता है और न ही औपचारिक नौकरी. यह फैसला उन महिलाओं के लिए निराशाजनक है जो राजनीति जैसे क्षेत्रों में काम करते हुए सुरक्षा चाहती थीं.
याचिका क्या थी?
केरल हाई कोर्ट ने मार्च 2022 में फैसला दिया था कि राजनीतिक दलों को POSH एक्ट के तहत आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने की जरूरत नहीं है. इसे चुनौती देते हुए वकील योगमाया एम.जी. ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि फिल्म, मीडिया और राजनीति जैसे गैर-पारंपरिक कार्यस्थलों में भी महिलाओं को सुरक्षा मिलनी चाहिए. उन्होंने तर्क दिया कि POSH एक्ट की परिभाषा व्यापक है ताकि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को सुरक्षा मिल सके, लेकिन इस फैसले से महिलाएं असुरक्षित रह जाएंगी.
सुप्रीम कोर्ट का रुख
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और एन.वी. अंजारिया की बेंच ने कहा कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल मानना संभव नहीं है. कोर्ट ने कहा, “आप किसी पार्टी को कार्यस्थल कैसे कह सकते हैं? यहां नौकरी नहीं है और न ही भुगतान मिलता है.” कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा करने से “पैंडोरा का बक्सा” खुल जाएगा.
POSH एक्ट का उद्देश्य
आपको बता दें कि POSH एक्ट 2013 में विशाखा बनाम राजस्थान केस के आधार पर बनाया गया था. इसका मकसद हर कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देना है. याचिका में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 के तहत महिलाओं को समानता, भेदभाव से मुक्ति, व्यवसाय की स्वतंत्रता और गरिमा से जुड़ा अधिकार है. उन्हें सुरक्षा से वंचित रखना अनुचित है.
कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल मानना सही नहीं होगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी तरह का शिकायत तंत्र बनाना हो तो चुनाव आयोग पहल कर सकता है.
आगे क्या?
याचिकाकर्ता ने कहा कि अगर कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया तो महिलाएं असुरक्षित माहौल में काम करने को मजबूर रहेंगी. उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों में काम करने वाली महिलाएं- चाहे स्वयंसेवक हों या जमीनी कार्यकर्ता- सुरक्षा से वंचित रह जाएंगी. इसके बावजूद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. इस फैसले ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बहस को फिर से उजागर कर दिया है.
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