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ऑपरेशन गिरगिट Photograph: (NN)
दिल्ली में लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास 10 नवंबर की शाम चलती कार में हुए ब्लास्ट की जांच अब एक हैरान करने वाले मोड़ पर पहुंच गई है. HR 26 CE 7674 नंबर की जिस कार में धमाका हुआ, उसकी ड्राइविंग सीट पर बैठा था सुसाइड बॉम्बर डॉ. उमर नबी, जो पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के स्लीपर सेल का हिस्सा था. लेकिन धमाके की असली कहानी यहीं खत्म नहीं होती बल्कि इसके धागे सीधे फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी की दीवारों के भीतर जाकर जुड़ते हैं.
पांच वक्त का था नमाजी
जांच एजेंसियों के हाथ लगा फुटेज और न्यूज़ नेशन के अंडरकवर ऑपरेशन ने एक ऐसे आतंक नेटवर्क का चेहरा उजागर किया है, जिसका संचालन सफेदपोश डॉक्टरों द्वारा किया जा रहा था. खुफिया कैमरे में दर्ज बातचीत में अस्पताल के स्टाफ ने साफ कहा, 'डॉ. मुजम्मिल पांच वक्त का नमाजी था, पर दिल में क्या चलता है किसे पता…डॉ. उमर, जिसने ब्लास्ट किया, वही मेडिसिन का प्रोफेसर था… ये उसका ही कमरा था. टोटल 4 लोग थे… अल फलाह के 3 डॉ. उमर, डॉ. मुजम्मिल और डॉ. शाहीन.
क्या करता था उमर?
यूनिवर्सिटी के नर्सिंग स्टाफ और कर्मचारियों की बाइट्स ने इस नेटवर्क के अंदरूनी अवैध गतिविधियों की पुष्टि कर दी. जिस जगह बैठकर डॉ. उमर सर्जरी और मेडिसिन पढ़ाते थे, उसी कमरे को वह धीरे-धीरे टेरर प्लानिंग रूम में बदल चुके थे. वहीं, डॉ. मुजम्मिल का केबिन भी अंडरकवर कैमरों में कैद हुआ, जहां संदिग्ध गतिविधियों के कई सुराग मिले.
32 सीरियल ब्लास्ट करने की थी प्लानिंग
जांच में यह भी सामने आया कि अल फलाह यूनिवर्सिटी सिर्फ एक अकेली घटना में शामिल नहीं थी, बल्कि इसे व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल का एपिसेंटर बनाया गया था. पुलवामा से लेकर नूह और सहारनपुर तक फैले 32 सीरियल ब्लास्ट की साजिश इसी नेटवर्क द्वारा तैयार की जा रही थी. अस्पताल और यूनिवर्सिटी की आड़ में यह मॉड्यूल भर्ती, ब्रेनवॉश, ट्रेनिंग और फंडिंग चारों मोर्चों पर सक्रिय था.
कैंपस के अंदर क्या क्या मिला?
न्यूज़ नेशन का अंडरकवर रिपोर्टर जब यूनिवर्सिटी के भीतर पहुंचा, तो वहां जो कुछ मिला उसने जांच एजेंसियों की चिंताएं और गहरी कर दीं. कैंपस के भीतर कई ऐसी जगहें मिलीं, जहां संदिग्ध मीटिंग्स होती थीं, डिजिटल फाइलें एक्सचेंज की जाती थीं और गुप्त गतिविधियां चलाई जाती थीं.
दिल्ली ब्लास्ट ने साफ कर दिया है कि भारत में व्हाइट कॉलर टेररिज़्म का नया मॉडल तैयार हो चुका है, जहां हथियारबंद कट्टरपंथियों के बजाय पढ़े-लिखे, तकनीकी और मेडिकल विशेषज्ञ आतंकी संगठनों के लिए सबसे खतरनाक हथियार बनते जा रहे हैं. यह खुलासा सिर्फ एक ब्लास्ट का सच नहीं, बल्कि भारत की डोमेस्टिक सुरक्षा को चुनौती देने वाले सबसे बड़े शिक्षित आतंक नेटवर्क की परतें खोल रहा है.
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