World Environment Day: पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत' प्रकृति का क्या हाल कर दिया हमने ?
गुरु ग्रंथ साहिब में लिखा है 'पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत' अर्थात हवा को गुरु, पानी को पिता और धरती को मां का दर्जा दिया गया है।
नई दिल्ली:
कभी तेज धूप तो अगले ही पल झमाझम बारिश। कभी कंपकपाती सर्दी और चारो तरफ धुंध तो अगले ही पल आसमान साफ.. यह चमत्कार नहीं गुस्सा है प्रकृति का। विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ सालों से होती रही है। विकास कितना हुआ ये देखने की बात है पर इस दौरान प्रकृति के साथ हमने क्या किया है ये सोचने की बात है।
आज न शुद्ध पानी है, न हवा और न ही शांत वातावरण। एक ऐसे देश में जहां नदी को मां माना जाता है और वह आस्था का विषय है। उस देश में गंगा नदी की हालत हमने ऐसी कर दी है कि पीना तो दूर उस पानी से नहाना भी जानलेवा हो सकता है।
घर-आंगन में तुलसी और पीपल के पौधे को पूजने वाले हम लोगों ने बड़ी-बड़ी इमारतों को खड़ा करने के लिए पेड़ों को पराया कर दिया। लगातार अलग-अलग कारणों से हम पेड़ काटते रहे, जिसकी वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग का स्तर बढ़ा। इससे भौगोलिक और पर्यावरणीय असंतुलन पैदा हो गया है।
लगातार अपनी सुविधा और हित के लिए हम पेड़ को काट रहें है। पेड़ कह रहा है- पेड़ हूं मैं जानता हूं प्रकृति के नियम को, काटते हो जब मुझको तो काटते हो तुम स्वयं को।
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हमने कभी पेड़ों की या नदियों की चेतावनी नहीं सुनी। गुरु ग्रंथ साहिब में लिखा है 'पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत' अर्थात हवा को गुरु, पानी को पिता और धरती को मां का दर्जा दिया गया है।
लेकिन हम अधिक विकास की रफ्तार के चलते तेजी से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। पृथ्वी पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन और उन संसाधनों के दोहन के अनुपात में अत्यधिक अंतर है। अत्यधिक दोहन के चलते शीघ्र ही प्राकृतिक संसाधनों के भंडार समाप्ति के कगार पर पहुंच जाएगा।
लगातार बढ़ती गाड़ियों की संख्या से वायू प्रदूषण बढ़ गया है। सांस लेना मुश्किल हो गया है। वन्य जीवों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है। बार-बार आग लगने के कारण छोटे वनस्पितियों की कई प्रजातियां ही समाप्त हो गई है। खेतों में भारी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भूमि बंजर होती जा रही है। परंपरागत खादों का उपयोग लगभग बंद हो गया है।
भू-जल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। भूमि में हो रहे बोर पंप के कारण भूगार्भिक जल का स्तर तेजी से घटता जा रहा है।
ऐसे में 5 जून यानी आज पूरी दुनिया में जब विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है तो हमें सोचने की जरूरत है कि आखिर हमे शुद्ध पानी हवा और शांत वातावरण को नुकसान पहुंचाकर विकास चाहिए या नहीं। क्या हमें संयुक्त राष्ट्र के इस साल के स्लोगन ‘कनेक्टिंग पीपल टू नेचर’ थीम पर सोचने और अमल करने का विचार नहीं करना चाहिए। क्या हमें प्रकृति से रिश्ता नहीं बनाना चाहिए।
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कब हुई पर्यावरण दिवस की शुरूआत
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर साल 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण चेतना और पर्यावरण आंदोलन की शुरुआत इसी सम्मेलन से मानी जाती है। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और सभी ने एक ही धरती के सिद्धांत को मान्य करते हुए हस्ताक्षर किए। इसके अगले साल यानि 5 जून 1973 से सभी देशों में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा।
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