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द्रौपदी मुर्मु के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद क्यों ट्रेंड हुआ आसाराम बापू

द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के राष्ट्रपति चुनाव जीतते ही जहां बधाईंयों का तांता लगा, वहीं अगले ही दिन आसाराम के नाम की सोशल मीडिया पर चर्चा होने लगी. 

Updated on: 22 Jul 2022, 04:14 PM

दिल्ली :

द्रौपदी मुर्मू भारतीय गणराज्य की 15वीं राष्ट्रपति बन गई हैं. गुरुवार यानी 21 जुलाई की रात में इसकी घोषणा हुई वहीं, 22 जुलाई को दिन में द्रौपदी मुर्मू के अलावा एक नाम और ट्वीटर पर ट्रेंड करने लगा. ये नाम था आसाराम का. कोई उन्हें संत आसाराम कहता है तो कोई आसाराम बापू लेकिन फिलहाल वह रेप के आरोप में जेल में बंद हैं. ये नाम अचानक क्यों ट्रेंड में आया और इसका द्रौपदी मुर्मू से क्या लिंक है यह सवाल लोगों के जेहन में तैरने लगा. 

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बता दें कि आसाराम की. आसाराम भारत में 450 से अधिक छोटे-बड़े आश्रमों के संचालक हैं. 2012 दिल्ली दुष्कर्म पर उनकी टिप्पणी और 2013 में नाबालिग लड़की के यौन शोषण सहित तमाम मामलों में उन पर आरोप लगे. आरोपों की आँच उनके बेटे नारायण साईं तक भी पहुंची. फिलहाल एक नाबालिग से रेप के मामले में आसाराम को उम्रकैद की सजा दी गई है और वह जोधपुर जेल की सलाखों के पीछे कैद हैं. लेकिन 22 जुलाई को उनका नाम ट्वीटर पर ट्रेंड करने लगा. उनके तमाम अनुयाई ये दावा करने लगे कि आसाराम ने आदिवासी इलाको में धर्म परिवर्तन रुकवाया है. धर्म बदल चुके तमाम आदिवासियों की हिंदू धर्म में वापसी कराई है. साथ ही वेलेंटाइन डे जैसे तमाम पश्चिमी संस्कृति वाले आयोजनों को रुकवाकर मातृ-पितृ पूजन दिवस और तुलसी पूजन दिवस शुरू करवाया है. इसी कारण उन्हें फंसाया गया है. अब ये ट्रेंड करवाने के लिए 22 जुलाई का दिन क्यों चुना ये बड़ा सवाल है. इसे द्रौपदी मुर्मू से भी जोड़कर देखा जा रहा है. 

दरअसल, द्रौपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचने वाली पहली आदिवासी और दूसरी महिला हैं. उनके आदिवासी होने और आदिवासियों में धर्मपरिवर्तन के मुद्दे से जोड़कर आसाराम को ट्वीटर ट्रेंड को देखा जा रहा है. हालांकि इसका कोई स्पष्ट प्रमाण अभी नहीं है. बता दें कि गुरुवार को हुई काउंटिंग में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस की प्रत्याशी द्रौपदी ने यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को तीसरे राउंड की गिनती में ही हरा दिया. यहां ये जानना भी जरूरी है कि आरएसएस सहित तमाम हिंदूत्ववादी संगठन आदिवासी क्षेत्रों में अवैध रूप से धर्मपरिवर्तन कराने का आरोप लगाते रहे हैं. इस मुद्दे पर कई बार विवाद भी होता रहा है.