ये हैं वो '7 फैसले' जिससे मोदी सरकार पर लगे 'मुस्लिम विरोधी' होने के आरोप
मुस्लिम विरोधी कह कर नागरिकता संशोधन विधेयक का विपक्षी दलों ने विरोध किया. ट्रिपल तलाक बिल से लेकर नागरिकता संशोधन बिल तक कई फैसले ऐसे हैं जिनकी बात करने पर भी उसे मुस्लिम विरोधी बताया गया. आइए जानते हैं नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान हुए कुछ ऐसे 7 फैसल
नई दिल्ली:
7 घंटों से ज्यादा समय तक चली बहस के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक को लोकसभा से मंजूरी मिल गई है. इस बिल को लागू करने के लिए देर रात तक सदन चलता रहा. संसद सत्र इस बिल के समर्थन में 311 वोट पड़े, जबकि 80 सांसदों ने इस बिल के खिलाफ वोटिंग की है. मुस्लिम विरोधी कह कर इस बिल का विपक्षी दलों ने विरोध किया. ट्रिपल तलाक बिल से लेकर नागरिकता संशोधन बिल तक कई फैसले ऐसे हैं जिनकी बात करने पर भी उसे मुस्लिम विरोधी बताया गया. आइए जानते हैं नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान हुए कुछ ऐसे 7 बिल और फैसलों के बारे में जिन्हें मुस्लिम विरोधी बताते हुए विरोध किया गया.
ट्रिपल तलाक बिल
Triple Talaq Bill : ट्रिपल तलाक बिल मुस्लिम महिलाओं के लिए नरेंद्र मोदी सरकार लेकर आई थी. 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक देने की प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था. पांच जजों की बेंच ने इसे इस्लाम की शिक्षा के विरुद्ध बताया था. 25 जुलाई 2019 को लोकसभा ने मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल पारित किया था. इस बिल को मुस्लिम विरोधी बताते हुए विपक्षी दलों ने विरोध किया. लेकिन राज्यसभा से यह बुल पास हो गया. यह बिल यह कहते हुए पास हुआ कि यह मुस्लिम महिलाओं के हितों की रक्षा करेगा. सरकार का कहना था कि ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, मलेशिया, जॉर्डन, मिस्र, ब्रुनेई, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, लीबिया, सूडान, लेबनान, सऊदी अरब, मोरोक्को और कुवैत जैसे इस्लामिक देशों में तीन तलाक पर प्रतिबंध है. ऐसे में भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है. यहां इस तरह का कानून नहीं होना चाहिए. इस कानून के तहत अगर कोई पुरुष तीन तलाक देता है तो उसकी गिरफ्तारी का प्रावधान है. विपक्ष का कहना था कि इस कानून का इस्तेमाल मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ किया जा सकता है.
NIA संशोधन विधेयक
NIA Amendment Bill 2019 : इस साल संसद ने नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी (NIA) संशोधन विधेयक भी पास किया. जिसके तहत NIA की शक्तियों को बढ़ाया गया. इसका भी विरोध धर्म के आधार पर किया गया. विपक्ष ने कहा कि NIA के पास पहले से ही बहुत सी ताकत है ऐसे में भारत 'एक पुलिस स्टेट की ओर बढ़ेगा और ताक़त का दुरुपयोग होगा.' हालांकि गृहमंत्री अमित शाह ने अपने जवाब में शक्तियों के दुरुपयोग को सिरे से नकार दिया. उन्होंने कहा कि इस कानून का इस्तेमाल शुद्ध रूप से आतंकवाद खत्म करने के लिए होगा. बिल पास होने के बाद अब NIA के पास ये अधिकार हैं कि वह साइबर क्राइम, मानव तस्करी से जुड़े मामलों की भी जांच कर सकेगी. संशोधन विधेयक में NIA को अधिकार दिए गए हैं कि वह ऐसे व्यक्तियों को भी जांच के घेरे में रखेगी जो भारत के बाहर भारतीय नागरिकों के खिलाफ या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले अनुसूचित अपराध करते हैं.
धारा 370 को हटाना
Abrogation of Article 370 : 5 अगस्त 2019 को कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला धारा 370 हटा दिया गया. यह बिल गृहमंत्री अमित शाह सबसे पहले राज्यसभा में लेकर आए. धारा 370 हटते ही जम्मू कश्मीर में भारत का संविधान लागू हो गया. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शाशित प्रदेशों में बांट दिया गया. जब यह बिल लाया गया तो इसे मुस्लिम विरोधी बताया गया. कहा गया कि धारा 370 हटा कर कश्मीर के मुस्लिमों को सरकार दबाना चाहती है. वहां हिंदुओं की आबादी बढ़ा कर कश्मीर की भौगोलिक स्थिति को खराब करना भारत का लक्ष्य है. वहीं सरकार का कहना था कि इस बिल को हटाने के बाद सही मायने में कश्मीर भारत में समाहित हुआ है. यह बिल आतंकवाद को खत्म करने और कश्मीर का विकास करने के लिए लाया गया है.
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर
NRC : राष्ट्रीय नागरिक पंजी या रजिस्टर एक ऐसा रजिस्टर है जिसमें सभी वास्तविक भारतीय नागरिकों के नाम हैं. वर्तमान में केवल असम के पास ही ऐसा रजिस्टर है. यानी NRC सिर्फ अभी असम में लागू है. हाल ही में यह भी घोषणा हुई है कि पूरे देश में NRC लागू होगा. असम में NRC मूल रूप से राज्य में रहने वाले भारतीय नागरिकों की एक सूची है. नागरिकों का रजिस्टर इस लिए बनाया गया था कि बांग्लादेश के सीमावर्ती राज्यों में विदेशी नागरिकों की पहचान के बारे में पता चल सके. हालांकि अभी यह लागू नहीं हुआ है लेकिन जब-जब इसकी चर्चा होती है तब-तब विपक्ष इसे लेकर सरकार पर निशाना साधता है. विपक्ष का कहना है कि यह मुस्लिमों को बिना देश का नागरिक बनाने के लिए किया जा रहा है. वहीं सरकार इस पर कहती है कि हम देश में एक भी घुसपैठिया बर्दाश्त नहीं करेंगे. सभी को उनके वतन वापस भेजेंगे.
नागरिकता संशोधन विधेयक
CAB : नागरिकता संशोधन विधेयक 1955 में संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन बिल 2019 लाया गया है. इसके तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह समुदायों हिंदू, सिख, जैन बौद्ध, ईसाई और पारसी धर्म के लोगों को नागरिकता देना है. इनमें वह सभी शामिल होंगे जो वैध दस्तावेज के बिना भारत आए हैं या जिनके दस्तावेज की समय सीमा समाप्त हो गई है. अगर कोई व्यक्ति इन तीन देशों में से आया है और उसके पास अपने माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र नहीं है तब भी छह साल के निवास के बाद उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाएगी. इस संशोधन में मुस्लिमों को नागरिकता के लिए शामिल नहीं किया गया है. इसी बात को लेकर विपक्ष ने इस बिल पर विरोध जताया. विपक्ष ने कहा कि यह भारत के धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है. साथ ही विपक्ष ने यह भी कहा कि आखिर बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को ही नागरिता क्यों दी जा रही है. अन्य पड़ोसी देशों को इसमें क्यों नहीं शामिल किया जा रहा है.
जनसंख्या नियंत्रण कानून
Population control : जनसंख्या नियंत्रण कानून के बारे में देश सुगबुगाहट शुरु हो गई है. हालांकि अभी इस तरह का कोई कानून लाने की बात नहीं हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 15 अगस्त 2019 को अपने भाषण में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बात कही. उन्होंने जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि राष्ट्र हित के लिए बहुत से लोग सोच समझ कर अपना परिवार बढ़ाते हैं. उन्होंने कहा कि बढ़ती जनसंख्या देश के लिए चिंता का विषय है. जागरुकता के माध्यम से ही इसे रोका जा सकता है. कैबिनेट मंत्री गिरिराज सिंह जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए मेरठ से रैली भी कर चुके हैं. विपक्ष जब-जब जनसंख्या नियंत्रण कानून की बात सुनती है तो कहा जाता है कि मुस्लिमों पर दबाव बनाने के लिए ये किया जा रहा है.
अयोध्या केस का फैसला
Ayodhya verdict : दशकों से चले आ रहे अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि जमीन रामलला विराजमान की है. सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन को हिंदू पक्ष को दे दिया. वहीं मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही कहीं 5 एकड़ भूमि देने का आदेश सुनाया. क्योंकि यह फैसला नरेंद्र मोदी सरकार के समय में आया है इसलिए उसका श्रेय भी लोग सरकार को ही दे रहे हैं. जबकि असल बात यह है कि चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच नेने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इस मामले में फैसला सुनाया. इस मामले में बहुत से लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत तहे दिल से नहीं किया.
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